SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे राखवी; कनिष्ठादि प्रासादोना योगे आ जगतीओ पण उत्तमा, मध्यमा अने कनिष्ठा; ए नामोथी ओळखाय छे. ठक्कुर फेरुना मते जगतीन मानजगई पासायंतरि, रसगुणा पच्छा नवगुणा पुरओ। दाहिणवामे तिउणा, इअ भणियं खित्तमज्जायं ॥२०१। भा०टी०-जगति प्रासादने आंतरे पाछल छ गुणी, आगल नवगुणी, अने डाबी-जमणी तरफ त्रण-त्रणगुणी राखयी. आ प्रमाणे प्रासादभूमिनी मर्यादा प्रथम निश्चित करीने कार्यारंभ करवो. जगतीनी उंचाईएकहस्ते तु प्रासादे, जगत्या उच्छ्यः समः। द्विहस्ते हस्तः सार्धस्तु, त्रिहस्ते तु द्विहस्तकः ॥२०२॥ साधद्विकर उत्सेधः, प्रासादे वेदहस्तके । चतुर्हस्तस्योपरिष्टाद्, यावद् द्वादशहस्तकम् ॥२०३॥ प्रासादस्यार्धमानेन, त्रिभागेन ततः परम् । चतुर्विशतिहस्तान्तं, कारयेत्तद्विचक्षणः ॥२०४॥ पादेनैवोच्छ्यं तावद् , यायापच्चाशहस्तकम् । एवमन्यश्च कर्तव्यो, जगतीनां समुच्छ्रयः ॥२०५॥ भा टी०-एक हाथना प्रासादनी जगती एक हाथ उंची करवी, बे हाथना प्रासादनी दोह हाथ, त्रण हाथना प्रसादनी बे हाथ अने चार हाथना प्रासादनी जगती अढी हाथ उंची करवी. चार हाथ पछीथी बार हाथ सुधीना कोइ पण माननो प्रासाद होय तो प्रासादना अर्धमाननी ऊंचाईवाली जगती करवी, पांच हाथे अढी, छ हाथे त्रण, सात हाथे साढी त्रण, आठ हाथे चार, नवहाथे साढीचार, दशहाथे पांच, अग्यारहाथे साढीपांच, अने बारहाथना प्रासादे जगती छ हाथनी उंचाईमां करवी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy