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________________ कडवक सं. १०. ११. १२. 12. १४. १५. १६. १७. २. ३. ४. विषयानुक्रम उज्जयिनीकी समृद्धिका वर्णन । वहाँ राजा वज्रसेन राज्य करता था. पूर्वोक्त कापिष्ठ स्वर्गदेव चय कर राजा वचसेनके यहाँ हरिषेण नामक पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ. हरिषेण द्वारा निस्पृह भावसे राज्य संचालन. राजा हरिषेण द्वारा अनेक जिन मन्दिरोंका निर्माण, सूर्य दिवस एवं सन्ध्या-वर्णन, सन्ध्या, रात्रि, अन्धकार एवं चन्द्रोदय वर्णन, चन्द्रोदय, रात्रि अवसान तथा वन्दीजनोंके प्रभातसूत्रक पाठोंसे राजाका जागरण. सुप्रतिष्ठ मुनिसे दीक्षा लेकर राजा हरिषेण महाशुक्र स्वर्ग में प्रीतिकर देव हुआ. सातवीं सन्धिकी समाप्ति. आशीर्वाद. सन्धि ८ १. महाशुक्रदेव [ हरिषेणका जो ] क्षेमापुरीके राजा धनंजयके यहाँ पुत्ररूपमें जन्म लेता है. चक्रवर्ती प्रियदत्त दर्पण में अपना पलित केश देखता है. चक्रवर्ती प्रियदत्तकी वैराग्य भावना नवोत्पन्न बालकका नाम प्रियदत्त रखा गया. उसके युवावस्थाके प्राप्त होते ही राजा धनंजयको वैराग्य उत्पन्न हो गया. राजा प्रियदत्तको चक्रवर्ती रत्नोंकी प्राप्ति. राजा प्रियदत्तको चक्रवर्ती रत्नोंके साथ नव-निधियोंकी प्राप्ति. चक्रवर्ती प्रियदत्तकी नव-निधियाँ. ५. ६. चक्रवर्ती प्रियदत्तकी नव-निधियोंके चमत्कार. नन्दन नामक राजा. १२. [२२६ से प्रारम्भ होनेवाली] राजा नन्दनकी भवावली समाप्त. १३. राजा नन्दनने भी पूर्वभव सुनकर प्रोष्ठिल मुनिसे दीक्षा ग्रहण कर ली. १४. मुनिराज नन्दनके द्वादशविध तप १५. घोर तपश्चर्यां द्वारा नन्दनने कषायों, मदों एवं भयोंका घात किया. १६. मुनिराज नन्दनकी पोर तपश्चर्या. १७. मुनिराज नन्दन प्राण त्याग कर प्राणत-स्वर्गके पुष्पोत्तर विमानमें इन्द्र हुए. आठवीं सन्धिको समाप्ति. आश्रयदाताके लिए आशीर्वचन. ११ पृष्ठ यूस/हिन्दी अनु १६८-१६९ Jain Education International १७०-१७१ १७०-१७१ १७२-१७३ १७२-१७३ For Private & Personal Use Only ८१ १७४- १७५ १७४- १७५ १७६-१७७ १७६-१७७ १७६-१७७ ७. ८. ९. चक्रवर्ती प्रियदत्तका वैराग्य. १०. चक्रवर्ती प्रियदत्तने अपने पुत्र अरिजयको राज्य सौंपकर मुनि-पद धारण कर लिया. ११. चक्रवर्ती प्रियदत्त घोर तपश्चर्याके फलस्वरूप सहस्रार स्वर्ग में सूर्यप्रभ देव हुआ, तत्पश्चात् १७८ - १७९ १७८-१७९ १८०-१८१ १८०-१८१ १८२-१८३ १८२-१८३ १८४ - १८५ १८६-१८७ १८६-१८७ १८८-१८९ १८८ - १८९ १९०-१९१ १९०-१९१ १९२-१९३ १९२-१९३ १९४-१९५ १९४-१९५ १९६-१९७ १९६-१९७ www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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