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________________ ၃၃၀ द्वार ५८-६० -विवेचनसिद्धों की जघन्य अवगाहना १ हाथ ८ अंगुल की है। जघन्य से जघन्य सिद्धियोग्य अवगाहना २ हाथ की है। जैसे, कूर्मापुत्र आदि की। इसे त्रिभागहीन करने पर सिद्धावस्था में १ हाथ ८ अंगुल ही रहती है तथा ७ हाथ आदि की अवगाहना भी घाणी आदि में पीलते समय संकुचित हो जाती है, अत: उनकी अपेक्षा से भी यह अवगाहना घट सकती है ।। ४८९ ।। ५९ द्वार : | शाश्वत जिननाम सिरि उसहसेणपहु वारिसेण सिरिवद्धमाणजिणनाह । चंदाणण जिण सव्वेवि भवहरा होह मह तुब्भे ॥४९० ॥ -विवेचनशाश्वत जिनप्रतिमाओं के नाम१. वृषभसेन ३. वर्धमान २. वारिषेण ४. चन्द्रानन ये चारों ही परमात्मा हमारे भव का नाश करने वाले हो ॥ ४९० ।। ६० द्वार : | उपकरण-संख्या पत्तं पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया। पडलाइं रयत्ताणं च गुच्छओ पायनिज्जोगो ॥४९१ ॥ तिन्नेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपोत्ती। एसो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु ॥४९२ ॥ जिणकप्पियावि दुविह पाणीपाया पडिग्गहधरा य। पाउरणमपाउरणा एक्केक्का ते भवे दुविहा ॥४९३ ॥ दुग तिग चउक्क पणगं नव दस एक्कारसेव बारसगं । एए अट्ठ विगप्पा जिणकप्पे हुति उवहिस्स ॥४९४ ॥ पुत्तीरयहरणेहिं दुविहो तिविहो य एक्ककप्पजुओ। चउहा कप्पदुगेणं कप्पतिगेणं तु पंचविहो ॥४९५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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