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________________ प्रवचन-सारोद्धार १९१ (२) शीतलनाथ और श्रेयांसनाथ के अन्तराल में १/४ पल्योपम तक तीर्थच्छेद (३) श्रेयांसनाथ और वासुपूज्य के अन्तराल में ३/४ पल्योपम तक तीर्थच्छेद (४) वासुपूज्य और विमलनाथ के अन्तराल में १/४ पल्योपम तक तीर्थच्छेद (५) विमलनाथ और अनन्तनाथ के अन्तराल में ३/४ पल्योपम तक तीर्थच्छेद (६) अनन्तनाथ और धर्मनाथ के अन्तराल में १/४ पल्योपम तक तीर्थच्छेद (७) धर्मनाथ और शान्तिनाथ के अन्तराल में १/४ पल्योपम तक तीर्थच्छेद कुल १/४ भाग न्यून ३ पल्योपम तक वर्तमान जिनेश्वरों के अन्तरकाल में धर्म का विच्छेद रहा ।। ४३०-४३१ ।। ३७ द्वार: आशातना दश तंबोल पाण भोयण पाणह थीभोग सुयण निट्ठवणे । मुत्तुच्चारं जूयं वज्जे जिणमंदिरस्संतो ॥४३२ ॥ -गाथार्थआशातना १० : जिनमंदिर सम्बन्धी-१. तंबोल २. पानी ३. भोजन ४. उपानह ५. स्त्रीभोग ६. शयन ७. थूकना ८. लघुनीति ९. बड़ीनीति १०. द्यूत-ये दश आशातनायें जिनमंदिर में त्याज्य है ।।४३२ ॥ -विवेचन१ पान, मुखवास आदि खाना । २ जलादि पीना। ३ भोजन करना। ४ जूते पहनना। ५ स्त्री भोग करना। ६ नींद लेना। ७ थूकना। ८ पेशाब करना। ९ शौच करना। १० जुआ खेलना ॥ ४३२ ॥ ३८ द्वार: आशातना चौरसी खेलं केलि कलिं कला कुललयं तंबोल मुग्गालयं, गाली कंगुलिया सरीरधुवणं केसे नहे लोहियं । भत्तोसं तय पित्त वंत दसणे विस्सामणं दामणं, दंतत्थी नह गंड नासिय सिरो सोतच्छवीणं मलं ॥४३३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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