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________________ द्वार ७-८ १५२ 21445544 ऐरवत क्षेत्रवर्ती वर्तमान २४ जिननाम १. बालचन्द्र २. श्रीसिचय ३. अग्निषेण ४. नन्दिषेण ५. श्रीदत्त ६. व्रतधर ७. सोमचन्द्र ८. दीर्घसेन ९. शतायुष १०. सत्यकी ११. युक्तिसेन १२. श्रेयांस १३. सिंहसेन १४. स्वयंजल १५. उपशान्त १६. देवसेन १७. महावीर्य १८. पार्श्व १९. मरुदेव २०. श्रीधर २१. स्वामिकोष्ठ २२. अग्निसेन २३. अग्रदत्त (मार्गदत्त) २४. वारिषेण ऐरवत क्षेत्रवर्ती-भावी २४ जिननाम १. सिद्धार्थ २. पूर्णघोष (पुण्यघोष) ३. यमघोष ४. सागर ५. सुमंगल ६. सर्वार्थसिद्ध ७. निर्वाणस्वामी ८. धर्मध्वज ९. सिद्धिसेन १०. महासेन ११. रविमित्र १२. सत्यसेन १३. श्रीचन्द्र १४. दृढ़केतु १५. महेन्द्र १६. दीर्घपार्श्व १७. सुव्रत १८. सुपार्श्वनाथ १९. सुकोशल २०. अनन्तार्थ २१. विमल २२. उत्तर २३. महर्द्धि २४. देवतानन्दक इस प्रकार २४ को ५ से गुणा करने पर, २४४५ = १२० कुल जिनेश्वर होते हैं। भवसमुद्र से उत्तीर्ण, सुख से समृद्ध, श्रीचन्द्रसूरि के द्वारा नमस्कृत, शाश्वत सुखदाता ऐसे एक सौ बीस तीर्थंकर परमात्माओं को हे भव्य जीवों ! आप नमस्कार करें ।। २९६-३०३ ॥ ८ द्वार: गणधर-नाम सिरिउसभसेण पहु सीहसेण चारु वज्जनाहक्खा। चमरो पज्जोय वियब्भ दिण्णपहवो वराहो य ॥३०४ ॥ पहुनंद कोत्युहावि य सुभोम मंदर जसा अरिट्ठो य । चक्काउह संबा कुंभ भिसय मल्ली य सुंभो य ॥३०५ ॥ वरदत्त अज्जदिन्ना तहिंदभूई गणहरा पढमा। सिस्सा रिसहाइणं, हरंतु पावाइं पणयाणं ॥३०६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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