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________________ कृष्णपक्ष-शुक्लपक्ष ] शुक्लपाक्षिक है और वह एक पुद्गल-परावर्तकाल में अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है । वर्तमान में वह जीव भले ही सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टि हो।' चूर्णीकार की मान्यतानुसार चरमावर्त काल शुक्लपक्ष है; यह मान्यता तर्क-सम्मत भी लगती है। शुक्लपक्ष के प्रारम्भ में जिस प्रकार अल्पकालीन चन्द्रोदय होता है, उसी तरह चरमावर्तकाल में आने पर जीव के आत्म-आकाश में कतिपय गुणों का चन्द्रोदय होता है । पूजनीय आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज ने 'योगदृष्टिसमुच्चय' नामक ग्रंथ में चरमावर्तकालीन जीव को भद्रमूर्ति-महात्मा कहा है । उन्होंने इस भद्रमूर्ति महात्मा के तीन विशेष गुण बताए हैं । दुःखितेषु दयात्यन्त-मद्वषो गुणवत्सु च । औचित्यासेवनं चैव सर्वत्रैवाविशेषत: ॥३२॥ दुःखी जीवों के प्रति अत्यन्त करुणा, गुणीजीवों के प्रति राग, और सर्वत्र अविशेषरूप से औचित्य का पालन, इन तीन गुणों से सुशोभित भद्रमूर्ति महात्मा को 'शुक्लपाक्षिक' कहने में श्री दशाश्रतस्कंध के चर्णीकार महापुरुष की मान्यता योग्य लगती प्रतीत होती है । 'तत्त्वं तु केवलिनो विदन्ति ।' तत्त्व तो केवली भगवान जाने । 'श्री पंचाशक' ग्रंथ में याकिनी महत्तरासूनु हरिभद्राचार्य ने शुक्लपाक्षिक श्रावक का वर्णन किया है: परलोयहियं सम्मं जो जिणवयणं सुणेइ उवउत्तो।। अइतिव्वकम्मविगमा सुक्को सो सावगो एत्थ ॥२॥ -प्रथमपंचाशक 'सम्यक् प्रकार से उपयोगपूर्वक जो श्रावक परलोक हितकारी जिनवचन का श्रवण करता है और अति तीव्र पाप कर्म जिसके क्षीण हो गये हैं, वह शुक्लपाक्षिक श्रावक कहलाता है । २. ग्रन्थि भेद जिस किसी भी प्रकार से 'तथाभव्यत्व' के परिपाक से जीवात्मा 1 'यथाप्रवृत्तिकरण' द्वारा आयुष्य कर्म के अतिरिक्त ज्ञानावरणीयादि १ गुरुतरगिरिसरित्-प्रवाहवाह्यमानोपलघोलनाकल्पेन अध्यवसायविशेषरूपेण अनाभोगनिर्वतितेन यथाप्रवृत्तिकरणेन । - प्रवचनसारोद्धारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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