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________________ ज्ञानसार और ध्यानरुष श्रेष्ठ अलकार आत्मा के अंग पर परिधान कर। विभेचन:- आतमदेव के गले में आरोपण करने की माला गूंथ ली है ? तैयार कर ली है? वह माला तुम्हें ही गंथनी है । क्षमा की मृदु सुरभि से युक्त प्रफुल्लित पुष्पों की माला गूंथकर तैयार रख ! क्षमा के एक-दो पुष्प नहीं, बल्कि पूरी माला! अर्थात एकाध बार क्षमा करने से काम नहीं चलेगा, अपितु बार-बार क्षमा की सौरभ फैलानी होगी। क्षमा को सदैव हृदय में बिठाये रखो....। क्षमा-पुष्प की मीठी महक ही तुम्हारे अंग-प्रत्यंग से प्रस्फुरित होती रहे ! जिस मनुष्य के गले में गुलाब के पुष्पों की माला हो, उस के पास यदि कोई जाए तो भला किस चीज की सुवास पाएगी? गुलाब की न? इसी तरह हे साधक ! यदि कोई तुम्हारे निकट पाए तो वह क्षमा की सौरभ से तरबतर हो जाना चाहिये। फिर भले ही वह साधु हो या कोई खूखार डकैत, ज्ञानी हो या अज्ञानी, निर्दोष हो या दोषी ! ध्यान रखना, कहीं क्षमा के पुष्प मुरझा न जाएँ। उन्हें सदैव-तरोताजा, पूर्ण विकसित रखना । क्षमा प्रदान करने का प्रसंग भला कब उपस्थित होता है ? जब कोई हमारे साथ वैर-वृत्तियुक्त व्यवहार करता है, हम पर क्रोध करता है और सरेआम हमारी निन्दा-अपमान करते नहीं अघाता । ऐसे समय हम किसी पर क्रोध न करें, पलट कर उस पर प्रहार न करें ... ना ही उसके प्रति जरा भी अरूचि व्यक्त करें ! इसी का नाम क्षमा है । जानते हो न तुम : 'क्षमा वीरस्य भषगम्' क्षमा वीर पुरूष का अनमोल आभूषण है । यही तो रहस्य है-प्रात्मा के गले में क्षमा के सुगंधित पुष्पों की माला प्रारोपित करने का । आत्मा की यह पुष्प-पूजा है....। इसी रहस्य के प्रतीक स्वरूप मनुष्य परमात्मा की मूर्ति को पुष्प अर्पित करता है...पुष्पमाला पहनाता है । निश्चयधर्म और व्यवहारधर्म-ये दो सुन्दर वस्त्र हैं, जिन्हें हमें आतम देव को परिधान कराना है । कम से कम दो वस्त्र तो शरीर पर होने चाहिए न ?एक अधो वस्त्र और दूसरा उत्तरीय! और प्रातम-देव के दो वस्त्र है : निश्चय और व्यवहार । अकेले निश्चय से भी काम नहीं बनता, ना ही अकेले व्यवहार से । व्यवहार-धर्म पातम देव का अधोवस्त्र है,जबकि निश्चय धर्म उत्तरीय वस्त्र! दोनों का होना अत्यावश्क है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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