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________________ अनुभव विवेचन : "यदि अनुभव-दृष्टि से ही विशुद्ध आत्म-स्वरुप का साक्षात्कार संभव है, तब फिर शास्त्रों का क्या प्रयोजन ? शास्त्राध्ययन, चिंतनमनन किसी काम का नहीं न ?” ४०३ इस प्रश्न का यहाँ निराकरण किया गया है। शास्त्र दृष्टि से समस्त शब्द - ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करना है, और उस ज्ञान से परमात्म-स्वरूप का रहस्य समझना है ? विना शास्त्र दृष्टि के शब्द - ब्रह्म का ज्ञान असंभव है और अनुभव - दृष्टि विकसित नहीं होती । शास्त्रों का अध्ययन और चिंतन-मनन अनुभव दृष्टि के लिए आवश्यक है । हाँ, शास्त्राध्ययन का ध्येय 'अनुभव' होना चाहिए । शास्त्रों की जाल में अटकने से कोई लाभ नहीं । यश-कीर्ति की पताका सर्वत्र लहराने के लिए शास्त्राध्ययन कर विद्वत्ता अर्जित करने वाले जीव अनुभवदृष्टि से वंचित रह जाते हैं । शास्त्रों का ज्ञान इस दृष्टि से प्राप्त करना चाहिए कि 'शास्त्र' ही हमारी 'दृष्टि' बन जाएँ । 'चर्मदृष्टि' पर 'शास्त्रदृष्टि' की ऐनक ऐसी तो व्यवस्थित बैठ जानी चाहिए की जो कुछ देखें, सुनें- समझें और चिंतन-मनन करें उसका एकमेव आधार शास्त्र ही हो । लगातार चार-चार माह के उपवास करने वाले मुनियों ने कुरगडु मुनि के पात्र में थूक दिया, तब कुरगडु मुनि ने उसे 'शास्त्रदृष्टि' से देखा था ! तपस्वियों के तिरस्कार-युक्त वाणी-शरों को शास्त्रदृष्टि से शांत रह केले थे । घृणायुक्त नयन-बाणों का समता भाव से सामना किया था ! (i) 'चर्मदृष्टि' ने जिसे 'थ्रुक' बताया 'शास्त्र - दृष्टि' ने उसे 'घी' समझा ! 'यह तो रुखे - सुखे भोजन में मुनिश्री ने कृपा कर 'घी' डाल दिया है ! तपस्वियों के मुख का अमृत ! ' (ii) चर्मदृष्टि से जो वचन असह्य पीडा के कारण थे, शास्त्रदृष्टि ने उन्हें 'पवित्र प्रेरणा का प्रवाह' माना ! ' संवत्सरी के पवित्र दिन भी मैं पेट भरने वाला हूँ.... मुझे इन तपस्वियों ने अनाहारी पद की प्रेरणा दी है !' (iii) मुनियों के दुर्व्यवहार और अपमानास्पद प्रवृत्ति को चर्मदृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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