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________________ १० जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा भगवतीसत्र० में भी पुद्गल शब्द को आत्मा (जीव) का वाचक माना गया है। दृष्यमान जगत् की सारी लीला का मूल सूत्रधार पुद्गल द्रव्य है। पुद्गल द्रव्य के लक्षण वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि हैं। आधुनिक विज्ञान ने इसे (Matter) और न्यायवैशेषिकों ने इसे भौतिक जड़ तत्त्व कहा है। छः द्रव्यों में जीव को छोड़कर धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल ये पाँचों द्रव्य अजीव हैं। पुद्गल चैतन्य गुण से रहित है। पुद्गलास्तिकाय के सूक्ष्मतम अविभाज्य अंश को परमाणु कहते हैं। पुद्गल द्रव्य मूर्त और अचेतन द्रव्य है। धर्म, अधर्म और आकाश ये एक-एक द्रव्य हैं। किन्तु पुद्गल अनेक द्रव्य है। अनेक पुद्गल परमाणु मिलकर स्कन्ध की रचना करते हैं और उनसे ही भौतिक जगत् की सभी वस्तुओं का निर्माण होता है। जैनाचार्यों ने पुद्गल द्रव्य को दो रूपों में विभाजित किया है : १. स्कन्ध और २. परमाणु । विभिन्न परमाणुओं के संयोग से ही स्कन्ध बनते हैं। पुद्गल द्रव्य के अन्तिम घटक को परमाणु कहते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र' एवं नवतत्त्व२२ में पुद्गलास्तिकाय के स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु ये चार भेद माने गये हैं। जैन सिद्धान्तदीपिका में बताया हैं कि "स्पर्शन-रस-गन्ध-वर्णवान् पुद्गलः” अर्थात् स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णयुक्त द्रव्य पुद्गल हैं। इन लाक्षणिक गुणों अर्थात् वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श आदि के कारण ही पुद्गल मूर्त (इन्द्रिय ग्राह्य) है। पुद्गल में ही ये गुण पाये जाते हैं - अन्य पाँच द्रव्यों में नहीं होते हैं। शेष पाँच द्रव्य अमूर्त (अरूपी) हैं। पुद्गल द्रव्य ही ऐसा है जिसकी इन्द्रियानुभूति की जा सकती है। २० (क) 'संदधयार उज्जोग, पभा छाया तवेहिअ । ___वण्ण गंध रसा फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ।। ११ ।।' -नवतत्त्वप्रकरण । (ख) उत्तराध्ययनसूत्र २८/१२ । (ग) बृहद्र्व्य संग्रह १६ । २१ 'खंधा य खंध देशा य तप्पएसा तहेव य ।। परमाणुणो य बोद्धव्वा, रुविणो य चउब्विहा ।। १० ।।' -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ३६ । 'धम्मा धम्मागासा, तिय-तिय भेया तहेव अद्धा य । खंधा देश पएसा, परमाणु अजीव चउदसहा ।। ८ ।।' -नवतत्त्वप्रकरण । २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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