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________________ ३७६ वस्त्र धारण करने का विधान हैं । जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा छः लेश्याओं का दृष्टान्त : I लेश्या के परिणामों की भिन्नता को आवश्यकसूत्र हरिभद्रीय टीका, गोम्मटसार आदि ग्रन्थों में दृष्टान्त के माध्यम से समझाया गया है : छ: मित्र थे । एकदा वे जंगल में भटक गए। सभी मित्रों को भूख लगी । चलते हुए कुछ देर बाद उन्हें फलों से लदा एक जामुन का वृक्ष दिखाई दिया। उन्हें जामुन खाने की प्रबल इच्छा हुई । मन ही मन विचार करने लगे। पहले मित्र ने कहा “मित्रों! इस वृक्ष को जड़मूल से काटकर गिरा लें, जिससे आराम से जामुन खाएंगे। तब दूसरे ने कहा “ अरे मित्रों ! सम्पूर्ण वृक्ष को गिराने से क्या फायदा? इसकी बड़ी-बड़ी शाखाएँ तोड़ लेते हैं ।” तीसरे मित्र ने कहा “मित्रों! अपने अल्प सुख के लिए पूरे पेड़ को काटने से कितनी हिंसा होगी? क्षणभंगुर सुख के लिए दूसरे को दुःख देना ठीक नहीं है। इस वृक्ष की भी आत्मा है। इसे भी सुख-दुःख की अनुभूति होती होगी। इसकी बड़ी-बड़ी शाखाएँ तोड़ना भी उचित नहीं है। इसकी छोटी-छोटी शाखाएँ तोड़ना पर्याप्त होगा ।" चौथे मित्र ने कहा " अरे मित्रों! यह भी ठीक नहीं है; छोटी-छोटी शाखाओं की अपेक्षा गुच्छों को तोड़ने से ही हमारी क्षुधा शान्त हो सकती है ।" पांचवें मित्र ने मृदु स्वर में परामर्श देते हुए कहा “मित्रों ! जामुन के फलों के गुच्छों को तोड़ना भी व्यर्थ है, क्योंकि उन गुच्छों में पके और कच्चे सभी जामुन होंगे। हमें तो पके हुए मीठे फल खाने हैं । फिर कच्चे जामुनों को निरर्थक नष्ट क्यों करें? ऐसा करें वृक्ष को झकझोर दें पके हुए जामुन नीचे गिर जाएंगे।” छठे मित्र ने करुणार्द्र स्वर में कहा “मित्रों ! वृक्ष को झकझोरने की क्या आवश्यकता है? पूरे वृक्ष को क्षति पहुंचेगी। इसलिए यदि हमें क्षुधा ही मिटानी है; जामुन ही खाना है, तो जमीन पर वृक्ष से टपककर जो पके पकाए मीठे फल गिरे हुए हैं, इन्हें ही उठाकर खा लें।” उन्होंने वैसा ही किया । 1 - Jain Education International — लेश्याओं के सन्दर्भ में जैन साहित्य में यह दृष्टान्त बहुत प्रसिद्ध है । इसमें छः मित्रों की मनः स्थिति, विचार, वाणी तथा कर्म For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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