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________________ १.९ १.१० ५. बन्धन का कारण आस्रव बन्धन से मुक्ति की ओर १. संवर : नवीन कर्मबन्ध को रोकने की प्रक्रिया २. निर्जरा ही मोक्ष का कारण ३. निर्जरा के भेद आध्यात्मिक विकास की विभिन्न अवधारणाएँ १.११.२ १.११.१ आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से त्रिविध आत्मा की अवधारणा आगम साहित्य और त्रिविध आत्मा की अवधारणाएँ (क) आचारांग और त्रिविध आत्मा (ख) भगवतीसूत्र की अष्टविध आत्मा की अवधारणा से त्रिविध आत्मा की अवधारणा की तुलना २.१.१ २.१.२ (क) लेश्या की अवधारणा (ख) गुणश्रेणियाँ (ग) गुणस्थान २.२.१ २.२.२ २.३.१ २.४.१ २.४.२ अध्याय २ : औपनिषदिक, बौद्ध एवं जैन साहित्य में आत्मा की अवस्थाएँ औपनिषदिकदर्शन में आत्मा की दो अवस्थाएँ १२७ औपनिषदिक चिन्तन में निद्रा, स्वप्न और तुरीय अवस्थाएँ १३३ १३७ १. उपाध्याय यशोविजयजी के अनुसार चेतना की चार अवस्थाएँ १३६ २. सुषुप्तावस्था में चैतन्य की अनुभूति कैसे होती है ? बौद्धदर्शन में आध्यात्मिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ हीनयान सम्प्रदाय की स्रोतापन्न आदि चार भूमियाँ महायान सम्प्रदाय की दस भूमियाँ १३८ १३९ १४३ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा १४८ १५२ कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में त्रिविध आत्मा की अवधारणा (क) मोक्षप्रामृत में त्रिविध आत्मा १५२ (ख) नियमसार में त्रिविध आत्मा १५२ Jain Education International १०२ १०३ १०५ ११२ ११३ ११३ ११४ ११४ ११५ ११६ १२१ १२१ For Private & Personal Use Only १२२ www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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