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________________ अन्तरात्मा का स्वरूप, लक्षण और प्रकार १८४ न हो। आचारांगसूत्र, समवायांग और प्रश्नव्याकरणसूत्र में अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनाओं का विवेचन निम्न मिलता है। आचारांगसूत्र और समवायांग के अनुसार इनके नाम निम्न हैं : १. ईर्यासमिति; २. मनोगुप्ति; ३. वचनसमिति; ४. आलोकित पानभोजन और ५. आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति । प्रश्नव्याकरणसूत्र के अनुसार इनके नाम निम्न हैं : १. ईर्यासमिति; २. मनःसमिति; ४. एषणासमिति; और ५. आदाननिक्षेपणसमिति । १८४ २. सत्य (सर्वमृषावादविरमण) महाव्रत सत्य महाव्रत के पालन में श्रमण मन, वचन और काया के त्रिविध योगों तथा कृत-कारित, अनुमोदन की नवकोटियों सहित अतत्त्व सम्भाषण का त्याग करता है । इस महाव्रत में वचन सत्यता पर अधिक बल दिया गया है। जैनागमों में असत्य के चार प्रकार निम्न रूप से बताये गए हैं : १. होते हुए नहीं कहना; २. नहीं होते हुए उसका अस्तित्व बताना; ३. वस्तु कुछ है और उसे कुछ और बताना; ४. हिंसाकारी, पापकारी और अप्रिय वचन बोलना । १८५ १८६ ३. भाषासमिति; जैन आगमों के अनुसार भाषा के चार प्रकार हैं : १. सत्य; २. असत्य; ३. मिश्र; और ४. व्यावहारिक । १८५ प्रश्नव्याकरणसूत्र में सत्य को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है सत्य ही भगवान् है ( तं सच्चं भगवं ) । वही समस्त लोक में सारभूत है ।" उत्तराध्ययनसूत्र की अपेक्षा से क्रोध, हास्य, लोभ तथा भयादि से प्रेरित होकर असत्य वचन का प्रयोग नहीं करना सत्य महाव्रत २७१ (क) आचारांगसूत्र २ / १५ / ४४ से ४६ ( अंगसुत्ताणि लाडनूं खण्ड १ पृ. २४२-४३) । (ख) समवायांग २५ / १ ( अंगसुतणि लाडनूं खण्ड ३ पृ. ८६२) । (ग) प्रश्नव्याकरणसूत्र ६ / १ / १६ ( अंगसुतणि लाडनूं खण्ड ३ पृ. ६८६ ) | पुरूषार्थसिद्धयुपाय ६१ । प्रश्नव्याकरणसूत्र २/२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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