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________________ १५० जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा की इन तीन अवस्थाओं की न केवल चर्चा है, अपितु इन पर विस्तार से प्रकाश भी डाला गया है। विशेषरूप से वे परमात्मप्रकाश में आत्मा की इन तीनों अवस्थाओं के स्वरूप का भी उल्लेख करते हैं। योगीन्दुदेव का काल विद्वानों ने सातवीं-आठवीं शताब्दी के लगभग माना है। योगीन्दुदेव के पश्चात् लगभग दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में हुए आचार्य शुभचन्द्र ने आत्मा की इन तीन अवस्थाओं का उल्लेख अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ज्ञानार्णव में किया है। लगभग बारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध श्वेताम्बर जैनाचार्य हेमचन्द्र ने अपने योगशास्त्र में भी इन त्रिविध आत्माओं की चर्चा की है।४ यहाँ यह ज्ञातव्य है कि त्रिविध आत्मा की इस अवधारणा का प्राथमिक विकास मुख्यतः दिगम्बर परम्परा में ही हुआ है। आचार्य कुन्दकुन्द, स्वामी कार्तिकेय, पूज्यपाद देवनन्दी, योगीन्ददेव और आचार्य शुभचन्द्र ये सभी दिगम्बर परम्परा के उद्भट आचार्य रहे हैं। श्वेताम्बर परम्परां के साहित्य में, जहाँ तक हमारी जानकारी है, सर्वप्रथम आचार्य हेमचन्द्र ने ही लगभग बारहवीं शताब्दी में त्रिविध आत्मा की अवधारणा का उल्लेख किया है। उनके पूर्व जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, सिद्धसेनगणि, आचार्य हरिभद्र, उद्योतनसूरी, आचार्य शीलांक और अभयदेव आदि के ग्रन्थों और टीकाओं में इस अवधारणा का कहीं निर्देश उपलब्ध नहीं होता है। यहाँ यह विशेषरूप से द्रष्टव्य है कि जहाँ दिगम्बर परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द के काल से त्रिविध आत्मा की अवधारणा के उल्लेख उपलब्ध होते हैं वहाँ श्वेताम्बर परम्परा में आचार्य हेमचन्द्र के पश्चात आनन्दघन, उपाध्याय यशोविजयजी आदि ने त्रिविध आत्मा की अवधारणा का उल्लेख किया है। उपाध्याय -योगसार । ३२ 'ति-पयारो अप्पा मुणहि परू अंतरू बहिरप्पु । पर सायहि अंतर-सहिउ बाहिरू चयहि णिभंतु ।। ६ ।।' ३३ 'त्रिप्रकारः स भूतेषु सर्वेष्वात्मा व्यवस्थितः । बहिरन्तः परश्चेति विकल्पैर्वक्ष्यमाणकैः ।। ५ ।।' ३४ 'बाह्यात्मानमपास्य प्रसत्ति भाजान्तरात्मना योगी। सततं परमात्मानं विचिन्तयेत्तन्मयत्वाय ।। ६ ॥' ३५ 'त्रिविध सकल तनु धरगत आत्मा बहिरात्म धुरीभेद ।। बिजो अन्तर आत्मा तिसरो परमात्म अविच्छेद ।। १ ॥' -ज्ञानार्णव । -योगशास्त्र, द्वादशप्रकाश । -आनन्दधन ग्रन्थावली ५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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