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________________ १४८ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा और परिपुष्ट करने का लक्ष्य रखते हैं। साधुमती नामक इस भूमि में साधकचित्त की अत्यन्त विशुद्धता परिलक्षित होती है। इस भूमिवाले साधक में दूसरी आत्माओं के मनोगत भावों को जानने का सामर्थ्य पैदा हो जाता है। यह भूमि सयोगीकेवली के समकक्ष मानी जा सकती है। त्रिविध आत्मा की दृष्टि से इसे परमात्मा की भूमिका कह सकते हैं। (११) धर्ममेघाभूमि : जिस प्रकार मेघ सम्पूर्ण आकाश को परिव्याप्त करता है; उसी प्रकार इस भूमि में बोधिसत्त्व की समाधि मेघ के समान धर्माकाश में व्याप्त होती है। धर्ममेघाभूमि में बोधिसत्त्व दिव्य शरीर को उपलब्ध कर रत्नजड़ित दैवीय कमल पर स्थित दृष्टिगोचर होते हैं। इस भूमि की तुलना जैनदर्शन में उपदेश प्रदान करने हेतु तीर्थंकर की समवसरण में उपस्थिति से की जा सकती है। यह भूमि भी त्रिविध आत्माओं में परमात्मदशा की ही सूचक है। २.४.१ जैनदर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा जैनदर्शन के प्राचीन आगम ग्रन्थों में विभिन्न अपेक्षाओं से आत्मा के विभिन्न प्रकार के वर्गीकरण उपलब्ध होते हैं। जैसे सम्यग्दर्शन की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि चारित्र की अपेक्षाओं से अविरत, देशविरत और सर्वविरत; कषाय की अपेक्षा से सकषायी और अकषायी; उपशम और क्षय की अपेक्षा से उपशान्तमोह और क्षीणमोह एवं योग की अपेक्षा से अयोगी और सयोगी। ये वर्गीकरण आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांग, भगवतीसूत्र आदि प्राचीन स्तर के अर्धागम ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। किन्तु बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के रूप में त्रिविध आत्मा की अवधारणा का हमें अर्धमागधी आगम साहित्य में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। इस आधार पर विद्वानों ने यह माना है कि जैनदर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा का विकास परवर्तीकाल में हुआ है। त्रिविध आत्मा की यह अवधारणा सर्वप्रथम आचार्य कुन्दकुन्द के मोक्षप्राभृत में मिलती है। मोक्षप्राभृत आचार्य २८ 'तिपयारो सो अप्पा परमंतर बाहिरो हु देहीणं । तत्थ परो झाइज्जइ, अंतोवाएण चएवि बहिरप्पा ।। ४ ।।' -मोक्षपाहुड । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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