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________________ १३६ जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा कहा है। जैनदर्शन के अनुसार सम्पूर्णतः जागृति ही तुरीयावस्था है। किन्तु जाग्रत और उजागर (तुरीय) अवस्था में अन्तर है। जाग्रतावस्था अन्तर्मुहूर्त से अधिक स्थायी नहीं रहती और उजागर (केवल-ज्ञान-दर्शन) अवस्था प्रकट होने के बाद सदैव बनी रहती है। यह सहज रूप से होती है। विशंतिका में कहा गया है कि मोह अनादि निद्रा है। स्वप्नावस्था भव्यबोधि परिणाम है। जाग्रतदशा अप्रमत्त मुनियों की होती है। यह तीसरी अवस्था है। उजागरदशा वीतरागी अवस्था की प्राप्ति है। इस प्रकार जैनदर्शन में आत्मा की दो और तीन अवस्था के साथ-साथ चार अवस्थाओं का क्रम प्रकारान्तर से उपलब्ध होता है। १. उपाध्याय यशोविजयजी के अनुसार चेतना की चार अवस्थाएँ उपाध्याय यशोविजयजी ने इन चार अवस्थाओं के गुणस्थानों की दृष्टि से चेतना की निम्न चार अवस्थाएँ बताई हैं। (१) बहुशयन अवस्था (घोर निद्रा जैसी दशा); (२) शयन अवस्था (स्वप्नदशा); (३) जागरण अवस्था (जाग्रत दशा); और (४) बहुजागरण अवस्था (सदैव जागने जैसी) होती है । बहुशयन अवस्था पहले गुणस्थान से लेकर तीसरे गुणस्थान तक होती है। दूसरी शयन अवस्था चौथे गुणस्थान से लेकर छठे गुणस्थान तक होती है। तीसरी जागरण अवस्था सातवें गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान तक होती है। तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में चौथी बहुजागरण अवस्था होती है। अतः जीव की ये चारों अवस्थाएँ आध्यात्मिक विकास की सूचक हैं। जाग्रत अवस्था १७ 'मोहो अगाइ निद्दा सुवणदसा भव्वेबोहि परिणामो । अपमत्त मुणी जागर, जागर, उजागर वीयराउत्ति ।।' __ -विशंतिका, उद्धृत अध्यात्मदर्शन, पृ. ४०७ । १८ 'चार छे चेतनानी दशा, अवितथा बजुश्यन जागरण चौथी तथा । मिच्छ, अविरत, सुयत तेरमे तेहनी, आदि गुण ठाणे नयचक्रमांहे मुणी ।। २ ।।' -३५० गाथानुस्तवन, ढाल १६वीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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