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________________ विषय प्रवेश ७३ ३. ज्ञानात्मा - उपयोग आत्मा का सामान्य लक्षण है। जैनदार्शनिकों ने उपयोगात्मा के दो भेद किये हैं - ज्ञानात्मा तथा दर्शनात्मा। चेतना का विवेक और विश्लेषण की शक्ति ज्ञान कही जाती है। सिद्धान्ततः तो आत्मा उपयोग रूप है या उपयोग आत्मा की ही एक पर्याय है। किन्तु पर्याय भी भिन्न-भिन्न होते हैं। अतः ज्ञानरूप पर्यायों की अभिव्यक्ति की अपेक्षा से ही आत्मा का एक भेद ज्ञानात्मा माना गया है। ४. दर्शनात्मा - चेतना या उपयोग का अनुभूत्यात्मक पक्ष दर्शन कहलाता है। सिद्धान्ततः तो ज्ञान और दर्शन - दोनों ही उपयोग के ही भेद हैं। सामान्य अनुभूतिरूप उपयोग (चेतना) दर्शन है और विशिष्ट अनुभूतिरूप उपयोग ज्ञान है। ज्ञान के समान दर्शन भी आत्मा की पर्याय या अवस्था विशेष है। आत्मा की अनुभूत्यात्मक पर्यायदशा को ही दर्शनात्मा कहा गया ५. चारित्रात्मा - आत्मा की संकल्पात्मक शक्ति को ही चारित्र कहा गया है। संकल्पशक्ति को शक्तिरूप में आत्मा का लक्षण माना जा सकता है। किन्तु संकल्प की अभिव्यक्ति संसार दशा में ही होती है। क्योंकि मुक्तात्मा तो निर्विकल्प होती है। लेकिन यह भी सत्य है कि आत्मा की सत्ता को स्वीकार किये बिना संकल्प सम्भव नहीं है। संकल्प भी आत्मा की पर्याय अवस्था का ही सूचक है; चाहे उसकी अभिव्यक्ति सांसारिक अवस्था में होती हो। इसी अपेक्षा से आत्मा का एक भेद चारित्रात्मा कहा गया है। चारित्र शब्द का एक अर्थ संयम भी है। अतः संयम की शक्ति को चारित्रात्मा कहा जा सकता है। आत्मा में संयम की शक्ति है और जब वह संसार दशा में भोगों से विरक्त रहकर संयम की साधना करती है, तो उस अवस्था में उसे चारित्रात्मा कहा जा सकता है। ६. वीर्यात्मा - चेतना की क्रियात्मक शक्ति को ही वीर्य कहा जा सकता है। यद्यपि मुक्तात्मा किसी प्रकार का पुरुषार्थ नहीं करती; फिर भी उसमें स्वभावतः शक्ति तो निहित रहती ही है। जैन दार्शनिकों ने आत्मा के स्वाभाविक गुणों को अनन्त-चतुष्टय के नाम से अभिव्यक्त किया है। इस अनन्त-चतुष्टय का एक भेद अनन्तवीर्य है। सांसारिक और संयम जीवन के समस्त पुरुषार्थ आत्मा की इस वीर्य शक्ति से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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