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________________ परिशिष्टानि ४१३ सूर्य हाथी कमलबन्धु६(३०).२३२ कल्याणगुण ७.(१९).२६१ स्वर्णकी लड़ीवाला वस्त्र कमलसहचर६.(२७).२३३ कल्याणांचित ४.(१०१).१८२ कमल के समान, कमलोंका मित्र सुवर्णसे शोभित, गर्भादि पाँच कमलाधिकपरिपोष ६.(३८).२३७ कल्याणोंसे शोभित कमलोंका अधिक पोषण, कमला कल्याणाद्रि १.४७.३१ लक्ष्मीका अधिक पोषण करनेवाला सुमेरु पर्वत करकाशंका५.(१९).१९९ कल्लोल १.(१७).११ ओलोंकी शंका सन्तति करम६.(१३).२२७ कबरी २.६८.९५ कलाईसे लेकर छिगुरी तक हाथकी स्त्रीकी चोटी बाह्य कोर कांचनाचलसंनिम २.४२.७९ करुणावरुणालय ९.(३७)३३९ सुमेरुके समान दयाके सागर कांचीकलाप २.(७७).८० करेणु ४.५५.१७३ मेखला काण्डवस्त्र १.१४.१० कर्णप्रणय १.(२६).१५ कमरका वस्त्र-लॅहगा राजा कर्णका स्नेह, कान तक लम्बे कान्तारागांचित ५.६८).१९३ कलकण्ठ ३.(४२).१११ स्त्रियोंके रागसे सहित, कान्तार + कोयल अग - वनके वृक्षोंसे सहित कलमकर६.(१३).२२७ कान्दविक ३.(३६).१०८ हाथीके बच्चेकी सूंड हलवाई कल शतटिनीविट७.(५७).२७८ कादम्बिनी ९.(२८).३३६ क्षीरसमुद्र मेघमाला कलापिकलाप९.(४).३२३ कालारि ४.(६०).१६६ मयूरसमूह समयका शत्रु,यम-मृत्युको जीतनेकलितमहातपस्थिति ६.(५).२२४ वाला बहुत भारी धूपमें स्थित, बहुत काश्यपी ५.(४१).२११ कठिन तप करनेवाला कल्प२.(१).४८ काष्ठा ८.(११).२८८ सीमा कल्पद्र १.१.१ कीर्ति ५.(१५).१९७ कल्पवृक्ष यश, वर्षा कल्पपादपवार ३.(४५).११३ कीलाल ४.(४१).१६० कल्पवृक्षोंका समूह रुधिर, जल कल्पभूज १.(८२).३७ कुञ्जरारातिकिशोर ६.(३६).२३६ कल्पवृक्ष सिंह शिशु कल्पेश्वर५.६.१९४ कुमुदिनीकान्त १.(३१).१८ स्वर्गके इन्द्र चन्द्रमा पृथिवी स्वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001712
Book TitlePurudev Champoo Prabandh
Original Sutra AuthorArhaddas
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages476
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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