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________________ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम में वर्णित ध्यान के भेदों के प्रसंग में इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और मानसिक शुद्धि, कार्मिक क्षय एवं आत्मविशुद्धि की दृष्टि से इनकी उपादेयता पर विचार किया गया है । विभिन्न आचार्यों द्वारा किये गये इस वर्णन से ऐसा अनुमेय है कि कभी ध्यान के क्रियात्मक रूप में इनके अभ्यास का एक क्रम रहा है, क्योंकि ये परिकल्पनायें बड़ी ही आकर्षक, रोचक और प्रभावक हैं। यदि पठन के साथ-साथ इनके क्रियान्वयनमूलक अभ्यास का कोई मनोवैज्ञानिक क्रम स्वीकार किया जा सके तो यह नि:सन्देह उपयोगी सिद्ध हो सकता है। खण्ड : षष्ठ आज भारतवर्ष में ध्यान के सम्बन्ध में अनेकानेक प्रयोग और विधिक्रम गतिशील हैं। इस प्राचीन परम्परा पर भी विशेष रूप से चिन्तन, विवेचन, विश्लेषण की आवश्यकता है जिससे ध्यानमूलक नवाभिनव प्रयोग विधाओं को विशेष प्रेरणा प्राप्त हो सकती है। जैन ध्यान योग के क्षेत्र में अभ्यास, प्रयोग और अनुसंधानरत सुधीजनों को इस विषय पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह हमारी ध्यान योग विषयक एक प्राचीन धरोहर है, उसे सुरक्षित एवं विकसित किया जाना वांछनीय है । पदस्थ ध्यान : 38 वें सर्ग में पदस्थ ध्यान का ग्रन्थकार ने विवेचन किया है। यह ध्यान पवित्र मंत्राक्षर स्वरूप पदों का आलम्बन कर उन पर चित्त को एकाग्र कर किया जाता है। अनादि सिद्ध स्वर व्यञ्जन रूप वर्ण मातृका के आधार पर भी इसे करने का विधान है। 3 93 हृदय आदि देहगत स्थानों में विविध परिकल्पनाओं के साथ अर्हं आदि के अक्षरों के सन्निवेश की इसमें अनेक विधाएँ स्वीकृत हैं। पदों या अक्षरों का आलम्बन कर एकाग्र की जाने वाली ध्यान रूप चैतसिक स्थिति वास्तव में बड़ी प्रभावोत्पादिका है । पवित्र पदों, मंत्राक्षरों पर ध्यान द्वारा तदनुरूप पवित्रता और निर्मलता का अन्तरात्मा में संचार होता है जिससे ध्यान की प्रक्रिया ऊर्ध्वगामिनी बनती जाती है। पदों एवं मंत्राक्षरों पर की जाने वाली एकाग्रता मूलक परिकल्पनाओं का विस्तृत विवेचन 'योग शास्त्र' के विवेचन के प्रसंग में किया जायेगा। क्योंकि पदस्थ ध्यान की यह प्रक्रिया प्रायः सभी प्रमुख जैन आचार्यों ने लगभग एक जैसी ही स्वीकार की है । वही, 93. 38.1-2 Jain Education International 45 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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