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________________ खण्ड : षष्ठ काठ के तख्ते, पत्थर की शिला अथवा जमीन पर या बालू रेत पर भलीभाँति स्थिर होकर आसनस्थ बने । 69 उन्होंने पर्यंकासन, अर्द्धपर्यंकासन, वज्रासन, वीरासन, सुखासन, कमलासन तथा कायोत्सर्ग ध्यानयोग्य इन आसनों का उल्लेख किया है। 70 जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम आगे लिखा है कि जिस-जिस आसन में साधक सुखपूर्वक उपविष्ट हो सके, निश्चल हो सके, वही आसन उसके लिए उत्तम है, ग्राह्य है। इस समय कालदोष से देहधारियों में वीर्य की विकलता है अर्थात् पराक्रम की क्षीणता या सामर्थ्य की हीनता है । इस कारण कतिपय आचार्यों ने पर्यंकासन और कायोत्सर्ग इन दो को ही प्रशस्त कहा है। क्योंकि जो वज्रऋषभनाराचसंहनन युक्त पराक्रमी निष्कम्प - धीर पुरुष स्थिरासन थे वे ही सर्वावस्थाओं में ध्यान करके पूर्व काल में सिद्धत्व को प्राप्त हुए हैं। 71 ध्यानसिद्धि के संबंध में ग्रन्थकार ने कहा है कि जब साधक का चित्त अविक्षिप्त-विक्षेपरहित होकर आत्मस्वरूपोन्मुख होता है उस समय ही ध्यान की सिद्धि होती है। ध्यानसिद्धि में स्थान और आसन का भी कारण के रूप में विधान है। यदि उनमें से एक भी न हो तो ध्यानयोगी का चित्त विक्षेप रहित नहीं हो पाता। जो साधक संवेग - वैराग्ययुक्त हो, कर्मास्रवों को रोकने में संलग्न हो, धीर आत्मबली हो, आत्मस्थिर हो, निर्मल आशय युक्त हो, वह सभी अवस्थाओं में, सभी स्थानों में, सभी समय में ध्यान कर सकता है। चाहे निर्जन स्थान हो या जन-स न-संकीर्ण भू-भाग हो, अनुकूल या प्रतिकूल स्थितियाँ हों, यदि साधक का चित्त स्थिर है तो वह उनमें ध्यान करने में सक्षम होता है। ध्यान के समय प्रसन्न होते हुए पूर्व दिशा या उत्तर दिशा में मुख कर ध्यान करना उत्तम है। 72 अन्त में, उन्होंने ध्यानाभ्यासी को विशेष रूप से सावधान करते हुए लिखा है कि जब वह ध्यान का आसन जमा कर बैठे तो उसका मन विवेक यानी भेदभाव रूप सागर की तरंगों से निर्मल हो, ज्ञान रूपी मंत्र से रागादि समस्त विषम ग्रह, पिशाच 69. वही, 28.9 ज्ञानार्णव 28.10 70. 71. वही, 28.19.23 वही, 72. 28.11-13 Jain Education International 35 PA For Private & Personal Use Only Prod www.jainelibrary.org
SR No.001711
Book TitleJain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUditprabhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, Religion, & History
File Size9 MB
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