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________________ ३४ अलंकारदप्पण परिकालंकार तथा अर्थान्तरन्यास अलंकार का लक्षण पुव्व-भणिअ-सरिसम्मि वत्थुण्णि भणणं तह अण्ण परिअरो। ण स परिअरिओ अत्यं (त) व (र) णासो जहा ।। ८३।। पूर्वभणितसदशे वस्तुनि भणनं तथा अन्यपरिकरः ।। न स परिकरितः अर्थान्तरन्यासो यथा ।।८।। पूर्व भणित सदृश वस्तु के सम्बन्ध में ही कथन करना अन्यपरिकर अलंकार है और वह अन्यपरिकर अन्य अर्थ से उस प्रकार उपस्कृत नहीं होता जिस प्रकार अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। उक्त कारिका में ग्रन्थकार अन्यपरिकर तथा अर्थान्तरन्यास अलंकारों को परिभाषित करना चाहता है किन्तु उसका कथन स्पष्ट न होने के कारण व्याख्यागम्य है। अन्यपरिकरालंकार में एक ही वाक्यार्थ होता है और उसमें पूर्वविदित अर्थ के ही समान कथन होता है किन्तु अर्थान्तरन्यास में दूसरे वाक्यार्थ से प्रथम वाक्यार्थ परिकरित अर्थात् उपस्कृत होता है। अन्य प्रसिद्ध आलंकारिकों ने 'परिकर' अलंकार वहाँ माना है जहाँ विशेषणों की साभिप्रायता रहती है। "अलंकारः परिकरः साभिप्राये विशेषणे" -कुवलयानन्द । "विशेषणैर्यत्साकूतैरूक्तिः परिकरस्तु सः" -काव्यप्रकाश ।। सुधासागरकार ने काव्यप्रकाश की टीका में परिकर का अर्थ इस प्रकार किया हैपरिकरणमुपस्करणम् विशेषणव्यङ्ग्यार्थेन वाक्यार्थस्य उपस्करणात् परिकर इत्युच्यते । परिकरालंकार में विशेषणपद का व्यङ्ग्यार्थ वाच्यार्थ का उपस्कारक होता है। इसके विपरीत अर्थान्तरन्यास में दो वाक्यार्थ होते हैं। दोनों में समर्थ्य-समर्थक भाव रहता है। अर्थान्तरन्यास का उदाहरण विप्फुरइ रवी उअआ अलम्मि णहु-अत्थ-महिहर-सिरत्थो । ते अंसिणो वि तेअं लहंति ठाणं लहेऊण ।।८४।। विस्फुरति रविरुदयाचले न खल्वस्तमहीधरशिरःस्थः । तेजस्विनोऽपि तेजो लभन्ते स्थानं लब्ध्वा ।।८४।। सूर्य उदयाचल पर ही चमकता है न कि अस्ताचल के शिखर में, तेजस्वी लोग भी समुचित स्थान पाकर ही तेज धारण करते हैं । यहाँ पर उत्तरवाक्यार्थ द्वारा पूर्ववाक्यार्थ का साधर्म्यमूलक समर्थन होने के कारण अर्थान्तरन्यास अलंकार है । यह सामान्य के द्वारा विशेष के समर्थन का स्थल है । पूर्ववाक्य विशेष है और उत्तर वाक्य सामान्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001707
Book TitleAlankardappan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages82
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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