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________________ xc भिक्षा प्राप्त करना निमित्त दोष है । (४) आजीव – जीवन निर्वाह हेतु साधु द्वारा गृहस्थ या आजीविका अर्जन करना आजीव दोष है । (५) वनीपक गृहस्थ की प्रशंसा करके भिक्षा प्राप्त करना वनीपक दोष है । (६) चिकित्सा - गृहस्थ की चिकित्सा करके आहार प्राप्त करना चिकित्सा दोष है । (७) क्रोधपिण्ड दिखाकर आहार प्राप्त करना क्रोधपिण्ड दोष है । (८) मानपिण्ड न मानकर साधु को आहार देना मानपिण्ड दोष है । (९) मायापिण्ड वेश परिवर्तन द्वारा गृहस्थ को धोखा देकर उससे आहार ग्रहण करना मायापिण्ड दोष है । ― - भूमिका (१०) लोभपिण्ड - स्वादिष्ट आहार के लालच से अनेक घरों में भिक्षा हेतु जाना लोभपिण्ड दोष है । (११) पूर्वपश्चात्संस्तव - आहार ग्रहण करने से पूर्व या बाद में दाता की प्रशंसा करना । (१२-१५) विद्या - मंत्र - चूर्ण- योग प्रयोग विद्या, मंत्र, चूर्ण और योग का प्रयोग कर आहार प्राप्त करना । (१६) मूलकर्म - जिसके कारण पूर्व दीक्षा पर्याय छेदकर पुनः दीक्षा लेना होता है, जैसे ब्रह्मचर्य भंग करके या गर्भपात करवाकर भिक्षा लेना मूलकर्म दोष है I इन सभी का एषणा दोष एषणा, गवेषणा, अन्वेषणा, ग्रहण एक ही अर्थ है । आहार की एषणा के दोष इस प्रकार हैं (१) शंकित आधाकर्मादि दोषों की शंका होने पर भी वह आहार लेना शंकित दोष है । सचित्त वनस्पति पानी आदि से युक्त --- हो, उसे ग्रहण करना । भिक्षा नहीं देने पर श्राप दे दूँगा, ऐसा भय को आहार देना । ― (२) प्रक्षित ( युक्त ) आहार लेना । लेना । Jain Education International अपने स्वाभिमान हेतु पारिवारिकजनों की बात (३) निक्षिप्त ( रखा हुआ) - (४) पिहित (ढँका हुआ) - - - (५) संहृत जिस बर्तन में सचित्त वस्तु रखी हो, उसी से साधु सचित्त वस्तु पर रखा हुआ आहार जो आहार सचित्त फलादि से ढँका ―― For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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