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________________ Ixxxviii भूमिका हैं या यह कह सकते हैं कि कार्य हो चुका है, अब इसे करना आवश्यक नहीं है। इसलिये साधु को कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व गुरु से पुनः पूछना ही प्रतिपृच्छना सामाचारी है। छन्दना सामाचारी - भिक्षा में लाए गए आहार को गुरु की आज्ञा से बाल, रोगी आदि को देने के लिये उनसे पूछना कि 'इसकी तुम्हें आवश्यकता है या नहीं', छन्दना सामाचारी है। विशिष्ट तप करने वाला, पारणा करने वाला या असहिष्णुता के कारण समूह (मण्डली) से अलग भोजन करने वाले साधु को छन्दना सामाचारी का अनुसरण करना चाहिये। निमन्त्रण सामाचारी - गुरु से पूछकर आहार आदि के लिये दूसरों को निमन्त्रण देना निमन्त्रण सामाचारी है। उपसम्पदा सामाचारी - ज्ञानादि के लिये गुरु से अलग अन्य आचार्य के पास जाकर रहना उपसम्पदा सामाचारी है। यह तीन प्रकार की होती है - ज्ञान-सम्बन्धी, दर्शन-सम्बन्धी और चारित्र-सम्बन्धी । इस प्रकार संयम और तप से परिपूर्ण साधुओं को अपने मूलगुण और उत्तरगुण की रक्षा के लिये उपर्युक्त सामाचारी का अच्छी तरह पालन करना चाहिये। जिससे अनेक भवों के संचित कर्मों का क्षय हो एवं उन्हें संसार-सागर से मुक्ति अर्थात् भव-विरह प्राप्त हो सके। त्रयोदश पञ्चाशक तेरहवें पञ्चाशक में 'पिण्डविधानविधि' का वर्णन किया गया है। पिण्ड अर्थात् भोजन या आहार करते समय आहार की शुद्धता को ध्यान में रखना आवश्यक है। जैन परम्परा में जो आहार उद्गम आदि दोषों से रहित है, वही शुद्ध है। आहार सम्बन्धी दोष तीन प्रकार के हैं - उद्गम-दोष, उत्पादन-दोष और एषणा-दोष । इन तीनों के क्रमशः सोलह, सोलह और दस अर्थात् कुल बयालीस भेद हैं, जो इस प्रकार हैं - । उद्गम दोष - उद्गम दोष आहार बनाने सम्बन्धी दोष हैं । जैसे साधु के लिये भोजन पकाना आदि उद्गम दोष कहलाते हैं। ये दाता से सम्बन्धित हैं । इनके निम्नलिखित सोलह प्रकार हैं - (१) आधाकर्म - किसी साधु विशेष को लक्ष्य कर बनाया गया भोजन आधाकर्म दोष वाला है। (२) औदेशिक - साधुओं को भिक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया भोजन औद्देशिक है। (३) पूतिकर्म - शुद्ध आहार में अशुद्ध आहार मिलाकर पूरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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