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________________ भूमिका जैनधर्म में तीर्थङ्करों के पाँच कल्याणक दिवस माने गए हैं - (१) तीर्थङ्करों का गर्भ में आगमन, (२) उनका जन्म, (३) अभिनिष्क्रमण, (४) केवलज्ञान और (५) मोक्षप्राप्ति । इन कल्याणकों के दिनों में जिन की शोभायात्रा निकालना श्रेयस्कर माना जाता है। इन दिनों में जिन - यात्रा करने से निम्न लाभ होते हैं Ixxxii (१) तीर्थङ्कर का लोक में सम्मान होता है, (२) पूर्वपुरुषों द्वारा आचरित परम्परा का पालन होता है, (३) देव, इन्द्र आदि द्वारा निर्वाहित परम्परा का अनुमोदन होता है, (४) जिनमहोत्सव गम्भीर सहेतुक हैं ऐसी लोक में प्रसिद्धि होती है, (५) जिनशासन की प्रभावना होती है और (६) जिनयात्रा में भाग लेने से विशुद्ध मार्गानुसारी गुणों के पालन सम्बन्धी अध्यवसाय उत्पन्न होते हैं । विशुद्ध मार्गानुसारी गुणों के पालन से सभी वांछित कार्यों की सिद्धि होती है । अर्हतों ने विशुद्ध मार्गानुसारी भाव को सकल वांछित कार्यों की सिद्धि का सफल हेतु कहा है । कल्याणक दिवसों में जिनमहोत्सव करने से तीर्थङ्कर का लोक में अति सम्मान होता है । इसलिये इन दिनों में जिनबिम्ब से युक्त रथ, शिबिका आदि महोत्सवपूर्वक नगर में घुमानी चाहिये । एक यह उत्कृष्ट क्रिया है, जिसे कल्याणक के दिनों में इन्द्रादि देवों ने भी किया है । इसलिये दुर्लभ मनुष्ययोनि पाने के बाद कल्याणक के दिनों में जिनयात्रा अवश्य निकालनी चाहिये । शास्त्रवचन एवं पूर्वजों की परम्परा का अनुसरण न करना उनका अपमान करना है । अतः श्रद्धालु एवं सज्जन मनुष्यों को गुरुमुख से जिनयात्रा महोत्सवविधि को जानकर जिनयात्राओं का आयोजन करना चाहिये । I - दशम पञ्चाशक दसवें पञ्चाशक में 'उपासक प्रतिमाविधि' का वर्णन किया गया है । दशाश्रुतस्कन्ध में आचार्य भद्रबाहु ने निम्न ग्यारह प्रतिमाएँ बतायी हैं - दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, नियम, अब्रह्मवर्जन, सचित्तवर्जन, आरम्भवर्जन, प्रेष्यवर्जन, उद्दिष्टवर्जन और श्रमणभूत । आचार्य हरिभद्र ने प्रतिमाओं के स्वरूप का वर्णन निम्न प्रकार से किया है दर्शनप्रतिमा - सम्यग्दर्शन के पालन करने को दर्शनप्रतिमा कहते हैं । इस अवस्था में मिथ्यात्व का क्षयोपशम हो जाने से व्यक्ति में दुराग्रह या कदाग्रह नहीं होता है। यह आस्तिक्य, अनुकम्पा, निर्वेद, संवेग और प्रशम इन पाँच गुणों से युक्त तथा शुभानुबन्ध से युक्त और शंकादि अतिचारों से रहित होती है । व्रतप्रतिमा Jain Education International Ma - इस प्रतिमा में श्रावक स्थूल-प्राणातिपातविरमण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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