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________________ भूमिका कुलीन हो, कंजूस न हो, धैर्यवान हो, बुद्धिमान हो, धर्मानुरागी हो, देव, गुरु और धर्म की भक्ति करने में तत्पर हो और शुश्रूषादि आठ गुणों से युक्त हो I साथ ही आगमानुसार जिनभवन के निर्माण विधि का ज्ञाता हो । अपने तथा दूसरों के हित के लिये जिनमंदिर बनवाने वाले निर्माता में उक्त गुणों का होना आवश्यक है, क्योंकि अयोग्य व्यक्ति जिनभवन का निर्माण करवाएगा तो जिनाज्ञा का भंग होने से दोष का भागी होगा। योग्य व्यक्ति को जिनभवन का निर्माण करवाते देखकर कुछ गुणानुरागी मोक्षमार्ग को प्राप्त करते हैं तो दूसरे गुणानुरागरूप शुभपरिणाम से मोक्षप्राप्ति के लिए बीजस्वरूप सम्यग् दर्शन आदि को प्राप्त करते हैं । सर्वज्ञ देव द्वारा स्वीकृत जिनशासन के प्रति जो शुभभाव हैं, वही शुभभाव सम्यग्दर्शन का हेतु बनते हैं । अतः जिनमन्दिर के निर्माण में कम से कम दोष लगे, ऐसी सावधानी रखनी चाहिये । इस सम्बन्ध में हरिभद्र ने पाँच द्वारों का निर्देश किया है १. भूमिशुद्धिद्वार - भूमिशुद्धि दो प्रकार से होती है द्रव्य और भाव । किसी भूमि या क्षेत्र का सदाचारी लोगों के रहने लायक होना तथा काँटे, हड्डियाँ आदि से रहित होना द्रव्यशुद्धि है और वहाँ जिनभवन बनवाने में दूसरे लोगों को कोई आपत्ति न होना यह भावशुद्धि है। अयोग्य क्षेत्र में जिनमन्दिर निर्माण से जिनमन्दिर की न तो वृद्धि होती है और न ही वहाँ साधु आते हैं । यदि कभी आते भी हैं तो उनके आचार का नाश होता है, फलतः जिनशासन की निन्दा होती है । अतः सदैव योग्य क्षेत्र में ही जिनमन्दिर बनवाना चाहिये । २. दलविशुद्धिद्वार दल सामग्री को कहते हैं। जिनमन्दिरनिर्माण के लिये काष्ठ, पत्थर आदि का शुद्ध होना भी आवश्यक है । काष्ठादि खरीदते समय होने वाले शकुन और अपशकुन सामग्री की शुद्धि - अशुद्धि जानने के उपाय हैं । - Jain Education International Ixxvii - ३. भृतकानतिसन्धानद्वार - जिनमन्दिर निर्माण सम्बन्धी कोई भी कार्य कराते समय मजदूरों का शोषण नहीं करना चाहिये । अधिक मजदूरी देने से वे प्रसन्न होकर अधिक कार्य करते हैं। इससे जिनशासन की प्रशंसा होती है, फलतः कुछ लोग जिनशासन के प्रति आकर्षित होकर बोधिबीज अर्थात् सम्यग्दर्शन को प्राप्त करते हैं । इस प्रकार जिनशासन की प्रभावना होती है । - ४. स्वाशयवृद्धिद्वार जिनभवन-निर्माण के समय जिनेन्द्रदेव के गुणों का यथार्थ ज्ञान एवं जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के लिये की गयी प्रवृत्ति से होने वाला शुभ परिणाम स्वाशयवृद्धि है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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