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________________ भूमिका अवैज्ञानिक, अबौद्धिक मान्यताओं तथा प्रवृत्तियों का कथा के माध्यम से निराकरण किया गया है । व्यंग्य और सुझावों के माध्यम से असम्भव और मनगढन्त बातों को त्यागने का संकेत दिया गया है । खड्डपना के चरित्र और बौद्धिक विकास द्वारा नारी को विजय दिलाकर मध्यकालीन नारी के चरित्र को उद्घाटित किया गया है । ध्यानशतकवृत्ति पूर्व ऋषिप्रणीत ध्यानतशक ग्रन्थ का गम्भीर विषय आर्त, रौद्र, शुक्ल इन चार प्रकार के ध्यानों का सुगम विवरण दिया गया है । ध्यान का यह एक अद्वितीय ग्रन्थ है । धर्म, यतिदिनकृत्य Ixii ---- इस ग्रन्थ में मुख्यतया साधु के दैनिक आचार एवं क्रियाओं का वर्णन किया गया है । षडावश्यक के विभिन्न आवश्यकों को साधु को अपने दैनिक जीवन में पालन करना चाहिए, इसकी विशद विवेचना इस ग्रन्थ में की गयी है । पञ्चाशक (पंचासग ) आचार्य हरिभद्रसूरि की यह कृति जैन महाराष्ट्री प्राकृत में रचित है । इसमें उन्नीस पञ्चाशक हैं, जिसमें दूसरे में ४४ और सत्तरहवें में ५२ तथा शेष में ५०-५० पद्य हैं । वीरगणि के शिष्य श्री चन्द्रसूरि के शिष्य यशोदेव ने पहले पञ्चाशक पर जैन महाराष्ट्री में वि० सं० १९७२ में एक चूर्णि लिखी थी, जिसमें प्रारम्भ में तीन पद्य और अन्त में प्रशस्ति के चार पद्य हैं, शेष ग्रन्थ गद्य में है । जिसमें सम्यक्त्व के प्रकार, उसके यतना, अभियोग और दृष्टान्त के साथ-साथ मनुष्य भव की दुर्लभता आदि अन्यान्य विषयों का निरूपण किया गया है। सामाचारी विषय का अनेक बार उल्लेख हुआ है । मण्डनात्मक शैली में रचित होने के कारण इसमें 'तुलादण्ड न्याय' का उल्लेख भी है । आवश्यक चूर्णि के देशविरति में जिस तरह नवपयपयरण में नौ द्वारों का प्रतिपादन है, उसी प्रकार यहाँ पर भी नौ द्वारों का उल्लेख है । पञ्चाशक का विस्तृत विवरण आगे दिया जा रहा है। पञ्चाशक - प्रथम पञ्चाशक प्रथम 'श्रावकधर्मविधि' पञ्चाशक के अन्तर्गत श्रावक के आचार पर प्रकाश डाला गया है। कहा गया है जो अनन्तानुबन्धी कषायों का नाश कर परलोक हेतु जिन वचनों को सुनता है तथा गुरुओं की सेवा और भगवान् जिनेन्द्रदेव की पूजा में निमग्न रहता है, वह उत्तम श्रावक है । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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