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________________ त्रयोदश ] पिण्डविधानविधि पञ्चाशक एषणा के दस दोषों के नाम संकिय मक्खिय णिक्खित्त पिहिय साहरिय अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस शंकितं प्रक्षितं निक्षिप्तं पिहितं संहृतं दायक अपरिणतं लिप्तं छर्दितम् एषणादोषा दश शंकित, प्रक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संहृत, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, ये दस एषणा के दोष हैं। ये आहार लेते समय होने वाले लिप्त और छर्दित दोष हैं ।। २६ ।। - प्रक्षित दोष लगता है। -- ३. निक्षिप्त (रखा हुआ) निक्षिप्त दोष है। Jain Education International जुतं । एषणा के दस दोषों का स्वरूप कम्मादि संकति तयं मक्खियमुदगादिणा उ जं णिक्खित्तं सजियादो पिहियं तु फलादिणा ठइयं ।। २७ ।। मत्तगगयं अजोग्गं पुढवादिसु छोदु देइ साहरियं । दायग बालादीया अजोग्ग बीयादिउम्मीसं ।। २८ ।। अपरिणयं दव्वं चिय भावो वा दोण्ह दाण एगस्स । लित्तं वसादिणा छड्डियं तु परिसाडणावंतं ।। २९ ।। कर्मादि शंकते तकं म्रक्षितमुदकादिना तु यद्युक्तम् । निक्षिप्तं सजीवादौ पिहितं तु फलादिना स्थगितम् ॥ २७ ॥ मात्रकगतमयोग्यं पृथिव्यादिषु क्षिप्त्वा ददाति संहृतम् । अयोग्यो बीजन्मिश्रम || २८ ॥ दायकबालादय अपरिणतं द्रव्यमेव भावो वा द्वयोः लिप्तं वसादिना छर्दितं तु १. शंकित आहार में आधाकर्मादि दोष होने की शंका हो तो वह आहार शंकित दोष वाला कहा जायेगा अथवा जिस आहार में जिस दोष की शंका हो उस आहार को लेने से यह दोष लगता है। ४. पिहित (ढँका हुआ) उसे लेना पिहित दोष है। दायगुम्मीसे । २. प्रक्षित (युक्त) सचित्त पानी, पृथ्वी आदि से युक्त आहार लें तो - -- २३१ हवंति ।। २६ ।। उन्मिश्रम् | भवन्ति ॥ २६ ॥ दान एकस्य । परिशाटनावत् ।। २९ ।। For Private & Personal Use Only • सचित्त वस्तु पर रखा हुआ आहार लेना जो आहार सचित्त फल आदि से ढँका हो www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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