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________________ प्रथम दिन। यह क्रिया निशजाती है। इसके सा एवं अनुज्ञा आचारदिनकर (भाग-२) 83 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान निशीथसूत्र के योगोद्वहन की विधि इस प्रकार है : प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया निशीथसूत्र का जो एक अध्ययन है, उसकी वाचना के उद्देश्य से की जाती है। इसके साथ ही इसी अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे। द्वितीय दिन :- द्वितीय दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। तृतीय दिन :- तृतीय दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पाँचवें और छटें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। चौथे दिन :- चौथे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सातवें और आठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। पाँचवें दिन :- पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा नवें और दसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। ... छटें दिन :- छठे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ग्यारहवें और बारहवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छः बार करे। सातवें दिन :- सातवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तेरहवें एवं चौदहवें उद्देशक के उद्देश, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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