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________________ तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ अष्टमी को दीक्षा अंगीकार की। गीत व कविता लिखने की रुचि से आपने 3 पुस्तकें साहित्यिक कोष में अर्पित की(1) वंदना के स्वर, (2) स्वरों का मेला, (3) संभावना शब्दों की। कुछ लेख भी आपने लिखे हैं। स्वास्थ्यनिकाय की व्यवस्थापिका के रूप में भी आपने कार्य किया है। 7.11.54 श्री अशोकश्रीजी 'सरदारशहर' (सं. 2017-वर्तमान) 9/320 आपके पिता दसानी श्री माणकचंदजी हैं। आपने 21 वर्ष की अवस्था में आचार्य श्री तुलसी से 'केलवा' में चातुर्मास के प्रारम्भ दिन आषाढ़ पूर्णिमा को दीक्षा ग्रहण की। आपने आगम व आगमेतर कई ग्रंथों का अध्ययन किया। आपकी साहित्यिक कृतियां-(1) भगवान महावीर और अहिंसा दर्शन (2) मूल्यों का चौराहा, (3) अनुभूति के स्वर, (4) देशी शब्दकोश (प्राकृत) है। इसके अतिरिक्त कई शोध निबंध भी लिखे। संवत् 2044 से आप अग्रणी साध्वी हैं। उपवास से अठाई तक लड़ीबद्ध तप एवं सौ अवधान तक का अभ्यास कर तप एवं ज्ञान दोनों का समन्वय अपने जीवन में किया। 7.11.55 श्री साधनाश्रीजी 'सरदारशहर' (सं. 2017-वर्तमान) 9/321 आपका जन्म संवत् 1997 में श्री पूनमचंदजी चंडालिया के यहां हुआ, श्री अशोकश्रीजी के साथ ही आप भी दीक्षित हुईं। नाम के अनुरूप ही आप साधनाशील हैं। उपवास से लेकर 16 उपवास तक की लड़ीबद्ध तपस्या तो कर ही चुकी हैं, साथ ही 18 वर्षों से आपने धारण किये वस्त्रों के अतिरिक्त वस्त्र ग्रहण नहीं किया। परिषहों को स्वेच्छा से सहन करना श्रमण-संस्कृति की अपनी अनूठी विशेषता है। 7.11.56 आठवीं साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी 'कलकत्ता' (सं. 2027 से वर्तमान) 9/323 आपका मूल निवास स्थान लाडनूं था, सं. 1998 में श्री सूरजमलजी बैद के यहां कलकत्ता में जन्म हुआ, और सं. 2017 की आषाढ़ी पूर्णिमा को केलवा में आचार्य तुलसी से दीक्षा ग्रहण की। आप प्रज्ञाविभूति साध्वी हैं। तेरापथ धर्म संघ में प्रचलित शिक्षा के पाठ्यक्रमों में आप सदा सर्वोच्च स्थान पर रहीं। आपने भाषायी ज्ञान के साथ आगम, दर्शन, कोश, व्याकरण एवं साहित्य आदि विविध विषयों का तलस्पर्शी अध्ययन किया, शैक्षणिक विकास एवं व्यक्तित्व की अनूठी विशिष्टताओं के कारण ही आपने सं. 2027 में "साध्वी प्रमुखा" पद प्राप्त किया। इस पद के लिये आचार्य तुलसी एवं रत्नाधिक 400 साध्वियों का आशीर्वाद आपको प्राप्त हुआ। आचार्य श्री ने आपकी विनम्रता, ज्ञानगरिमा, सत्यनिष्ठा, निरभिमानता एवं अनुशासनप्रियता आदि गुणों से अभिभूत होकर "महाश्रमणी" एवं "संघमहानिदेशिका" विशेषण से भी आपको अलंकृत किया। साहित्य सृजन व संपादन के क्षेत्र में तेरापंथ की आप प्रथम साध्वी प्रमुखा हैं। आपकी रत्नगर्भिणी मेधा नित्य नूतन साहित्य के सृजन व सम्पादन में लगी रहती हैं, उसकी कुछ झलक इस प्रकार है (क) कविता साहित्य-1) सांसों का इकतारा, 2) सरगम, 3) तुलसी प्रबोध, 4) साध्वी प्रमुखा लाडांजी 5) श्रद्धा स्वर। (ख) यात्रा साहित्य (आचार्य तुलसी की पद-यात्राओं के संस्मरण) 1) जा घर आए संत पाहुने, 2) संत चरण गंगा की धारा, 3) घर कूचा घर मजला, 4) पांव-पांव चलने वाला सूरज, 5) जब महक उठी मरुधर माटी, 6) बहता पानी निरमला, 7) अमरित बरसा अरावली में, 8) परस पांव मुस्काई घाटी। (ग) निबंध साहित्य-1) दस्तक शब्दों की, 2) इतस्ततः, 3) करत-करत अभ्यास के, 4) सत्य का पंछी विचारों का पिंजरा, 859 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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