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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास कोमल और मधुर व्यवहार करते थे। आपकी चार शिष्याएँ हुईं-श्री अभयकुमारी जी, श्री दीपमालाजी, श्री दयावतीजी तथा श्री चम्पकलताजी।।29 6.3.2.34 श्री जयंतीजी (सं. 1971-2025) आप पसरूर (पंजाब) के लाला काशीराम जैन की पुत्री व श्री वस्तीशाहजी स्यालकोट वालों की पुत्रवधु थीं। 21 वर्ष की उम्र में श्री पन्नादेवीजी म. सा. के पास आपकी दीक्षा हुई, आप बहुत विनम्र व सेवाभाविनी थीं। संवत् 2025 में आप स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी दो शिष्याएँ थीं- (1) प्रज्ञावतीजी ये होश्यारपुर की थीं संवत् 1979 में 19 वर्ष की उम्र में दीक्षित हुई। इनकी श्री मृगावतीजी (संवत् 1992) श्री प्रमोदजी (संवत् 2014), श्री कविताजी (संवत् 2022) ये तीन शिष्याएँ हुईं। (2) विजेन्द्रकुमारीजी-रावलपिंडी के श्री राधूशाह ओसवाल की सुपुत्री थीं। 28 वर्ष की उम्र में पतिवियोग के पश्चात् सं. 1999 में दीक्षा ली।130 6.3.2.35 श्री पद्मावतीजी (सं. 1972-73) ___आप पटियाले के उच्च खानदानी क्षत्रिय कुल की कन्या थीं, 18 वर्ष की उम्र में अत्यंत वैराग्य भाव से फाल्गुन कृ. सप्तमी को आप धनदेवीजी की शिष्या बनीं, आप बहुत शांत, विनयशीला व कष्ट सहिष्णु थी, किंतु दीक्षा के चार मास पश्चात् ही श्रावण मास में आप स्वर्ग सिधार गईं।। 6.3.2.36 श्री पन्नादेवीजी 'टुहाना' (सं. 1974-2022) आपका जन्म हिसार जिले के 'टोहाना' ग्राम में सं. 1949 के शुभ दिन लाला मूलचंदजी अग्रवाल के यहां हुआ, विवाह के पश्चात् वैराग्य की प्रबल भावना से स्वयं साध्वी वेष धारण करने के बाद पति व श्वसुर आदि से आज्ञा प्राप्त कर आप रामपुरा में श्री निहालदेवीजी के पास संवत् 1971 में दीक्षा का पाठ पढ़कर श्री जमुनादेवीजी की शिष्या बनीं। आपका आगमज्ञान तलस्पर्शी था, तथा संयम उच्चकोटि का था, एक साथ हाथ, पैर, सीने और रीढ़ की हड्डी पर चार फोड़े निकल आने पर भी एलोपैथिक औषधियों का सेवन नहीं किया। आप बहुत मितभाषी थीं, हाथ में सदैव माला रहती थी। अल्प निद्रा, ध्यान स्वाध्याय आदि में लीन रहती थीं। आपकी वाणी के प्रभाव से अनेकों के दुःख दर्द नष्ट हुए थे। सं. 2022 माघ शु. 13 को दिल्ली में आप स्वर्गवासिनी हुईं। आपका जीवन एवं उनसे संबंधित अनेक शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग संयम गगन की दिव्य ज्योति ग्रंथ में प्रकाशित हुए हैं। आपकी 5 शिष्याएँ हुईं- श्री हुक्मदेवीजी, श्री प्रियावतीजी, श्री प्रेमकुमारीजी, श्री प्रकाशवतीजी, श्री चन्द्र लाजी।।32 6.3.2.37 श्री हुक्मदेवीजी (सं. 1974-2000) आपका जन्म सं. 1948 लाला गंगाराम जैन मोही निवासी की धर्मपत्नी श्रीमती धनदेवी की कुक्षि से हुआ। नौ वर्ष की अल्पायु में रायकोट निवासी श्री लक्खूशाहजी के सुपुत्र से आपका विवाह हुआ। पतिवियोग के पश्चात् 129. साध्वी श्री उमेशकुमारी, नॉलेज इज़ लाईफ भाग 3, पृ. 1-8, ई. 1987 130. साधना पथ की अमर साधिका, पृ. 134 131. श्री द्रौपदांजी म. का जीवन चरित्र, पृ. 206 132. संपादक-श्री तिलकधर शास्त्री, प्राप्तिस्थान-श्री नरेन्द्रकुमारजी जैन बी.जी. 3 पूर्वी शालीमार बाग, दिल्ली. ई. 2003 580 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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