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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास क्रान्तदृष्टा उपाध्याय अमरमुनिजी ने सहस्रों वर्षों से चली आई एकमात्र पुरूषाधिकृत महिमाशाली 'आचार्य पद' से साध्वी श्री चन्दनाजी को अलंकृत कर जैन इतिहास में एक अभूतपूर्व मोड़ दिया है, उनका यह कार्य शताब्दियों से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था के लिये गहरी चुनौती है। इस पद को प्राप्त करने के पश्चात् चंदनाजी की 'जिनशासनोन्नतिकरा' क्षमता में निश्चय ही अभिवृद्धि हुई है। आचार्य पद से अलंकृत होने के पश्चात् वे 1993 में विश्वधर्म संसद में जैनदर्शन के प्रतिनिधि के रूप में शिकागों में आमंत्रित हुईं। वहाँ भी भारत-अमेरिका के मध्य सेतु का कार्य करे ऐसी 'वीरायतन इन्टरनेशनल' संघ की स्थापना की। सन् 2000 में विनाशकारी भूकम्प के समय अंजार, भुज, आदि स्थानों पर 'वीरायतन विद्यापीठ' की स्थापना की, मुफ्त कम्प्यूटर एजुकेशन प्रारंभ किये। आपकी करूणा, मानवसेवा की भावना से प्रभावित होकर मद्रास की सुप्रसिद्ध संस्था 'भगवान महावीर फाउण्डेशन' ने प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया। 28 फरवरी 2003 को उन्हें 'श्रीमती राजमती पाटील जन सेवा पुरस्कार' भी प्रदान किया ।" एक जैन साध्वी का इतने विशद स्तर पर रचनात्मक कार्य करना एक महनीय उपलब्धि है। आप वाहन-विहारी जैन साध्वी हैं। वर्तमान में आप एक बृहद् स्वतन्त्र संघ की संचालिका हैं, जिसमें सुशिक्षित, डॉक्टर, प्रशासक एवं इंजिनियर शिष्याएँ हैं। प्रतिवर्ष अमेरिका, न्यूजर्सी, न्यूयार्क, मेरीलैंड, लांस एन्जेलिस, सैनफ्रांसिस्को, शिकागो, एटलाण्टा आस्ट्रेलिया आदि स्थानों पर जाकर भगवान महावीर के संदेश को विदेशों में पहुंचाने का कार्य कर रही हैं। आचार्य चंदनाजी की वर्तमान में 10 शिष्याएँ हैं, उनके नाम और दीक्षा तिथि निम्न है - ( 1 ) श्री चेतनाजी - 13 मार्च 1973 (2) श्री विभाजी - 10 मार्च 1978, (3) श्री शुभम् जी - 10 मार्च 1978 (4) श्री श्रुतिजी - 28 अक्टूबर 1985 (5) श्री शिलापीजी -23 अक्टूबर 1991, (6) श्री संप्रज्ञाजी - 11 अक्टूबर 1992 (7) श्री सुमेधाजी- 26 फरवरी 2000, (8) श्री रोहिणीजी-20 अक्टुबर 2002, (9) श्री सोमाजी- 20 अक्टूबर 2002, (10) साध्वी श्रीजी -20 अक्टुबर 2002 डॉ. साध्वी संप्रज्ञाजी ने " जैनधर्म की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में राजगृह" विषय पर शोध प्रबंध लिखकर मगध विश्वविद्यालय बोधगया, विहार से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। आचार्य चंदनाजी के विचार एवं उनके विविध कार्यक्रम आदि अमर भारती मासिक पत्रिका में प्रकाशित होते हैं। 82 6.3.1.55 डॉ. श्री ज्ञानप्रभाजी (सं. 2015 से वर्तमान) आप ललवाणी परिवार की कन्या हैं। महासती उज्जवल कुमारी जी के पास 1 मई 1958 को अहमदनगर में आपकी दीक्षा हुई। आपने पाथर्डी बोर्ड से जैन सिद्धान्त शास्त्री कर आगम, न्याय, संस्कृत प्राकृत में गहन विद्वत्ता प्राप्त की। आप हिंदी में साहित्यरत्न, फिलोसॉफी में एम. ए. हैं, पूना विश्वविद्यालय से 'जैन दर्शन में जीवतत्त्व' विषय पर सन् 1989 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप अग्रणी विदुषी साध्वी हैं, वर्षों से विभिन्न क्षेत्रों में विहार कर जन-जन में धार्मिक जागृति पैदा हो इसके लिये उपासिका युवा बहु ग्रुप नासिक, औरंगाबाद, ज्ञान युवक मंडल, चंदनबाला महिलामंडल, उज्जवल कन्या मंडले, आनंद बाल मंडल, विनय बालिका मंडल (चेन्नई व रायपुर) आदि के द्वारा धर्मोन्नति के कार्य कर रही हैं। श्री आत्मदर्शनाजी, श्री पुष्पलताजी, श्री पवित्रदर्शनाजी, श्री सुप्रियदर्शनाजी, श्री नियमदर्शनाजी आपकी शिष्याएँ हैं। 3 81. ऋ. सं. इ., पृ. 345 82. साध्वी शिलापीजी, समय की परतों में, पृ. 194 प्रका. वीरायतन राजगृह नालंदा, बिहार, 1998 ई. 83. आचार्य श्री चंदनाजी से प्राप्त सामग्री के आधार पर Jain Education International 562 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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