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________________ 5.7.6 प्रवर्तिनी श्री खांतिश्रीजी ( संवत् 1974-2034 ) आपका जन्म कच्छ प्रदेश के मांडवी तालुका में नागलपुर नामक छोटे से ग्राम में संवत् 1958 में हुआ । पिता पूंजाभाई व माता मूळीबेन ने अपनी पुत्री 'जीवां' का 14 वर्ष की उम्र में रामजीभाई मग के साथ विवाह किया, किंतु थोड़े ही समय बाद विषमज्वर से आक्रान्त होकर रामजीभाई स्वर्गवासी हो गये। आपने तब अपना लक्ष्य निश्चित् किया और अमदाबाद में श्री पूनमचन्द्रगणि के पास आकर संवत् 1974 वैशाख कृ. 5 को दीक्षा अंगीकार करली। प्रखर विद्वान् सरल स्वभावी एवं विशाल साध्वी समुदाय की सृजनकर्त्री श्री लाभश्रीजी जो संसारपक्षीय भुआ भी थी, उनके पास आगमज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। आपकी व्याख्यान शैली इतनी निराली थी कि कच्छ भुज में मानों सारा शहर ही आकर एकत्र हो जाता था। राजपरिवार भी आपका धर्मोपदेश सुनने के लिये प्रतिदिन आता था। रानीवास में प्रवचन के लिये आपको निमंत्रण दिया जाता था, रानी दिलहरकुंवरबा सहित सभी ने आपको गुरू-रूप में माना। अनेकों को आपने व्यसनों से मुक्त कराया। आपने अनेकों पुस्तकें भी लिखीं। 'साध्वी व्याख्यान निर्णय' नामकी पुस्तक आपकी तार्किक बुद्धि की परिचायिका है। संवत् 2034 में बम्बई मुलुन्ड में आपका स्वर्गवास हुआ। इनका शिष्या परिवार अत्यंत विस्तृत है- श्री सुनन्दाजी, सुमंगलाश्रीजी, ॐकारश्रीजी, कल्पलताश्रीजी, कुंजलताश्रीजी, सुनंदिताश्रीजी आदि 13 शिष्याएँ एवं सौम्यगुणाश्रीजी, सुरलताश्रीजी, सुयशा श्रीजी, राजयशाश्रीजी, स्वयंप्रज्ञाश्रीजी, वीरभद्राश्रीजी, कृतिनंदिताश्रीजी, विश्वनंदिताश्रीजी आदि प्रशिष्याएँ श्री सुनन्दाजी की शिष्याएँ हैं। 573 5.7.7 श्री आनंद श्रीजी ( संवत् 1987-2042 ) नवावास ग्राम के वेलजीभाई आसारिया तथा वेलबाई के यहाँ संवत् 1972 में जन्म लिया, संवत् 1987 फाल्गुन कृष्णा 2 को नवावास में श्री विवेक श्रीजी की शिष्या बनीं। प्रखरबुद्धि के कारण ये विविध विषयों में पारंगत बनीं। अमृतश्रीजी, आत्मगुणाश्रीजी, प्रियदर्शनाश्रीजी, भाग्योदयाश्रीजी आदि शिष्याओं को संयम की शिक्षा प्रदान की संवत् 2042 में स्वर्गवासिनी हुईं। 574 5.7.8 श्री महोदया श्रीजी ( संवत् 1990-2048 ) जन्म संवत् 1954 खंभात के सुश्रावक श्री मगनलालजी की धर्मपत्नी हरकौर की रत्नकुक्षि से हुआ । विवाह के कुछ समय पश्चात् पति का स्वर्गवास होने पर वैराग्य को बल मिला, संवत् 1990 मृगशिर कृष्णा 7 को चंदनश्रीजी की शिष्या बनीं। स्व-कल्याण के लिये इन्होंने स्वयं को तप में संलग्न किया, वैसे ही पर- कल्याण की भावना से अनेक प्रांतों में विचरण कर लोगों को धर्म में स्थिर किया, खंभात, अमदाबाद में महिला मंडल, अगासी तीर्थ में मुनिसुव्रत महिला मंडल की स्थापना की, भद्रेश्वर तीर्थ में बिना मूल्य जमीन दिलवाकर गुरू मंदिर की रचना करवाई। स्वयं की तीन शिष्याएँ बनीं। खंभात में ये स्थिरवासिनी थीं। संवत् 2048 खंभात में इनका स्वर्गवास हुआ। 575 573. वही, पृ. 820-22 574. वही, पृ. 832 575. वही, पृ. 835-37 जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास Jain Education International 482 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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