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________________ श्वेताम्बर - परम्परा की श्रमणियाँ 5.4.8 साध्वी प्रतापश्री (संवत् 1619 ) वि. संवत् 1619 में जलालुद्दीन अकबर के राज्यकाल में श्री धर्ममूर्तिसूरि के विजय राज्य में महोपाध्याय पुण्यलब्धि के शिष्य उपाध्याय भानुलब्धि की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी चन्द्रलक्ष्मी की शिष्या करमाई की शिष्या 'प्रताप श्री' का उल्लेख है। इस वर्ष के मार्गशीर्ष शुक्ला 2 शुक्रवार को मेवात - मंडल के अंतर्गत तिजारा नगर में इनके पठन हेतु 'ज्ञानपंचमी कथा' की प्रति लिखी गई थी 1498 5.4.9 साध्वी करमाई ( संवत् 1633 ) संवत् 1633 भाद्रपद शुक्ला 15 शुक्रवार को 'रयवोंडी नगर' में धर्ममूर्तिसूरि के विजय राज्य में भानुलब्धि की शिष्या साध्वी करमाई के पठनार्थ सेवककृत 'ऋषभदेव विवाहलुं' की प्रति खिमराज ने लिखी। मुनि लाखा की गुरू पट्टावली के अनुसार धर्ममूर्तिसूरि के शिष्य परिवार में 5 महत्तरा 11 प्रवर्तिनी एवं 57 साध्वियाँ थीं। आपका आचार्य काल संवत् 1602 से 1671 तक था ।499 5.4.10 साध्वी कुशललक्ष्मी (संवत् 1648 ) संवत् 1648 पोष शुक्ला 3 बुधवार को अंचलगच्छ के वाचक विवेकशेखर ने 'शांति मृगसुंदरी की चौपई की प्रति साध्वी कुशललक्ष्मी के पठनार्थ लिखी। यह प्रति 'वीरविजय उपाश्रय अमदाबाद नो भंडार' (दा. 17 ) में संग्रहित है। आप साध्वी विमलाजी की शिष्या थीं 1500 5.4.11 साध्वी विमलश्री (संवत् 1670 ) इन्होंने संवत् 1670 में बालोतरा चातुर्मास के समय 'उपाध्याय मेघसागर जी की गंहुली' रची। 501 5.4.12 साध्वी सहजलक्ष्मी ( संवत् 1673 ) आप अंचलगच्छ की साध्वी वाल्हाजी की शिष्या लालाजी की शिष्या सुमतलक्ष्मी की शिष्या थीं। आपने वाचक मेघराज रचित 'ज्ञातासूत्र 19 अध्ययन पर भास' की प्रति संवत् 1673 में लिखी। इस प्रति की पुष्पिका में इन सबका नामोल्लेख है। 502 5.4.13 भुज व खंभात में साध्वियाँ ( संवत् 1677 ) वाचक देवसागर जी (अंचल) के पत्रानुसार संवत् 1677 भुज में नयश्री, रूपश्री, क्षीरश्री आदि साध्वियाँ तथा खंभात में यशश्री, सुवर्णश्री, लक्ष्मीश्री, रत्नश्री, इन्दिराश्री आदि साध्वियों का चातुर्मास था 1503 498. (क) अंचल. दिग्दर्शन पृ. 361, (ख) डॉ. शिवप्रसाद, अंचल का इति., पृ. 133 499. (क) अंचल. दिग्दर्शन, पृ. 361, (ख) जै. गु. क. भाग 1 पृ. 212 500. (क) अंचल, दिग्दर्शन, संख्या 1556, (ख) जै. गु. क. भाग 2, पृ. 212 501. अंचल. दिग्दर्शन, पृ. 413 502. जै. गु. क. भाग 3, पृ. 6, अंचल. दिग्दर्शन, संख्या 1557 503. अंचल. दिग्दर्शन, पृ. 413 Jain Education International 459 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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