SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास तपस्याएँ की।258 श्री मृगेन्द्राश्री जी की 14 शिष्याएँ एवं 70 के लगभग प्रशिष्याएँ हैं। शिष्याओं के नामसंवेगश्रीजी, सुयशाश्रीजी, प्रबोधश्रीजी, विबुधश्रीजी, संवरश्रीजी, मृगलक्ष्याश्रीजी, विनीतयशश्रीजी, तत्त्वरसाश्रीजी, मनीषाश्रीजी, ऋजुप्रज्ञाश्रीजी, चिद्वर्षाश्रीजी श्रुतवर्षाश्रीजी, अक्षयवर्षा श्रीजी, हार्दज्ञाश्रीजी। प्रशिष्याओं के नाम-ऋषिदत्ताश्रीजी, शुभंकराश्रीजी, विपुलयशाश्रीजी, वरधर्माश्रीजी, कल्पधर्माश्रीजी, पुष्पदंताश्रीजी, शुभ्रयशाश्रीजी, सुसंयताश्रीजी, वर्यताश्रीजी। व्रतधराश्रीजी, आर्यव्रताश्रीजी, मुदिताश्रीजी, कल्पवंदिताश्रीजी, धर्मशीलाश्रीजी, रम्यशीलाश्रीजी, भव्यशीलाश्रीजी, अभिज्ञाश्रीजी। जिनधर्माश्रीजी, वीर्यधर्माश्री, दिव्यधर्माश्री, नयधर्माश्रीजी, दीप्तिधर्माश्रीजी, प्रीतिधर्माश्रीजी, दर्शिताश्रीजी, परागधर्माश्रीजी, विरागधर्माश्रीजी। पद्मयशाश्रीजी, मोक्षविदाश्रीजी, प्रशमधराश्रीजी, शीलंधराश्रीजी, कीर्तिधराश्रीजी; उदितयशाश्रीजी, उपशमयशाश्रीजी, कीर्ति रेखाश्रीजी। मार्दवताश्रीजी, मोक्षरताश्रीजी, विशदगुणाश्रीजी विरक्ताश्रीजी, प्रशमरताश्रीजी, धर्मरताश्रीजी, जयप्रज्ञाश्री, व्रतरताश्रीजी, शमरताश्रीजी, वात्सल्यरताश्रीजी, अमिताश्रीजी सौम्यताश्रीजी, शमिताश्रीजी, प्रविदिताश्रीजी एवं वरेण्यताश्रीजी। इस प्रकार शिष्या-प्रशिष्या परिवार की विशालता से श्री मृगेन्द्राश्रीजी के विषय में यह सहज अनुमान लगता है कि वे महागुणी, शासनप्रभाविका एवं समर्थ साध्वी थीं।59 मृगेन्द्रश्रीजी की तपोमूर्ति साध्वियों का ज्ञातव्य इस प्रकार उल्लिखित हैसंवेगश्रीजी - वर्धमान तप की सौ ओली, बीस स्थानक, बावन जिनालय, कल्याणक, चौमासी, डेढमासी, पंचमी, नवपदओली (एक धान्य से) प्रशमश्रीजी - अठाई, सोलह, बावन जिनालय, वर्षीतप, वर्धमान तप की 27 ओली, नवपद ओली। निर्वेदश्रीजी - बीस स्थानक, अठाई, वर्षीतप, पंचमी, नवपद ओली, सिद्धितप, एकादशी, वर्धमानतप की 45 ओली, तीन चौबीसी शुभंकराश्रीजी - 8, 10, 16, 30 उपवास, मेरूतप, पंचमी, दशमी, नवपद ओली, बीस स्थानक, 96 जिन कल्याणक, क्षीरसमुद्र, पूनम, चत्तारि अट्ठदस दोय, वर्धमान तप की 51 ओली से ऊपर, 100 आयंबिल, वर्षीतप, तीन चौमासी, सिद्धाचल के 7 छ? 2 अट्ठम। कल्पधर्माश्रीजी उपधान, नवाणु, पंचमी, क्षीरसमुद्र, नवपद ओली, वर्धमान तप की 17 ओली, पोषदशमी (25 वर्षों से) सुयशाश्रीजी नवकारमंत्र व 14 पूर्व के एकासन, 48 अट्टम, बीसस्थानक की 2 ओर वर्धमान तप की 9 ओली, पोष दशमी तप विपुलयशाश्रीजी - पंचमी, दशमी, बीज, ग्यारस, वर्धमान तप की 25 ओली, नवपद ओली आदि। प्रबोधश्रीजी - 8, 11, 16, 17, 30 उपवास, पंचमी, दसमी, ग्यारस, वर्धमान तप की 63 ओली, वर्षीतप, सिद्धितप, नवपद ओली। मृगलक्ष्याश्रीजी पंचमी, दशमी, बीस स्थानक, वर्षीतप, सिद्धितप, श्रेणीतप, नवपद ओली, वर्धमान तप की 53 ओली, 500 आयंबिल 258. वही, पृ. 237 259. वही, पृ. 117-79 330 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy