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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.1.100 श्री पद्मसिद्धि गणिनी, पुण्यसिद्धि गणिनी, मानसिद्धि गणिनी ( संवत् 1669 ) संवत् 1669 में विरचित उपदेशमाला प्रकरण के बालावबोध में श्री विमलकीर्ति ने उक्त साध्वियों का उल्लेख किया है। इसकी हस्तलिखित प्रति जिनभद्रसूरि नो हस्तलिखित भंडार ( ग्रंथांक 1581 ) में मौजूद है | 15 संवत् 1692 में रचित 'विमलकीर्ति गुरू गीतम्' से प्रतीत होता है कि ये खरतरगच्छ के कीर्तिरत्नसूरि शाखा की साध्वियाँ थीं। 5.1.101 श्री प्रेमसिद्धि गणिनी ( संवत् 1671 ) श्री विमलकीर्तिकृत 'यशोधर चरित्र चौपाई' (संवत् 1665) राजधानी नगर में संवत् 1671 को प्रेमसिद्धि गणिनी के वाचनार्थ प्रतिलिपि की गई। यह प्रति अनंतनाथ जी नुं जैन मंदिर मांडवी मुंबई भंडार 2 में संग्रहित है। ये मानसिद्धिगणिनी की प्रशिष्या और श्री पद्मसिद्धिगणिनी की शिष्या थीं। 5.1.102 श्री तारादेवी (संवत् 1684 ) तारादेवी सेरूणा नगर निवासी लूणिया गोत्रीय शाह तिलोकसी की पत्नी थीं। इनके दो पुत्र थे - रतनसी एवं रूपचन्द। पति तिलोकसी के स्वर्गवास के पश्चात् इन्हें संसार से विरक्ति हुई, अतः अपने दोनों पुत्रों को साथ लेकर इन्होंने बीकानेर में विराजित भट्टारक श्री जिनराजसूरि के पास दीक्षा की प्रार्थना की। पूज्यश्री ने लाभ देखकर माता तेजलदे (तारादेवी) को 16 वर्षीय पुत्र रतनसी एवं 8 वर्षीय रूपचंद के साथ दीक्षा प्रदान की। इनकी दीक्षा संवत् 1684 को हुई। रतनसी आगे जाकर 'आचार्य जिनरत्नसूरि' के रूप में प्रख्यात आचार्य हुए। 17 5.1.103 श्री राजसिद्धि, आणंदसिद्धि ( संवत् 1686 ) श्री भागसिद्धि गणिनी की ये दोनों शिष्याएँ थीं, इनके लिये पुण्यकीर्ति रचित 'रूपसेनकुमार रास' (संवत् 1681 रचित) की प्रति तैयार कर संवत् 1686 में पठनार्थ दी गई। यह प्रति अगरचंद नाहटा बीकानेर के संग्रह में है | 128 5.1.104 श्री ज्ञानसिद्धि, धनसिद्धि ( संवत् 1689 ) इनके लिये पंडित पुण्यकलश ने 'नवतत्त्व स्तबक' की प्रतिलिपि तैयार कर संवत् 1689 कार्तिक कृष्णा 7 को पठनार्थ दी। यह प्रति जैन विद्याशाला अमदाबाद में है। 19 5.1.105 श्री प्रभावती ( संवत् 1690) संवत् 1690 आश्विन 2 बुधवार को 'श्री जंबूस्वामी चतुष्पदी' की प्रति श्री राजकलश की शिष्या प्रभावती 115. जैसल. के जैन ग्रंथ भंडारों की सूची, परिशिष्ट 13, पृ. 599 116. जै. गु. क. भाग 3 पृ. 116 117. (क) ख. दी. नं. सूची, पृ. 29 (ख) खरतरगच्छ पट्टावली, परिशिष्ट-2, पृ. 36 118. जै. गु. क., भाग 3 पृ. 123 119. (क) जै. गु. क., भाग 3 पृ. 354 (ख) प्रशस्ति-संग्रह, पृ. 200, प्रशस्ति संख्या - 705 Jain Education International 287 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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