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________________ अध्याय । ] सुबोधिनी टीका । [ १.१ धौम्य है, उससे उत्पाद विनाश नहीं है । इसलिये प्रत्येक अवस्थामें रहनेवाली अवान्तर सत्ता त्रिलक्षणात्मक नहीं है किन्तु एक एक लक्षण रूप है । इसी अपेक्षासे त्रिलक्षणात्मक महासत्ताका प्रतिपक्ष त्रिलक्षणाभाव अर्थात् एक एक लक्षण रूप अवान्तर सत्ता है । क्योंकि त्रिलक्षणका प्रत्येक एक लक्षण विरोधी है । और भी एकस्वास्तु विपक्षः सत्तायाः स्याददो ह्यनेकत्वम् । स्यादप्यनन्तपर्ययप्रतिपक्षस्त्वेकपर्ययत्वं स्यात् ॥ २२ ॥ अर्थ - एक सत्ताका प्रतिपक्ष अनेक है । और अनन्त पर्यायका प्रतिपक्ष एक पर्याय है । भावार्थ - महासत्ता सम्पूर्ण पदार्थों में एक रूप बुद्धि पैदा करती है इसलिये वह एक कहलाती है । परन्तु अवान्तर सत्ता में यह बात नहीं है, जो एक वस्तुकी स्वरूप सत्ता है, वह दूसरेकी नहीं है । इसलिये वह अनेक कहलाती है । प्रश्न एकस्मिन्निह वस्तुन्यनादिनिधने च निर्विकल्पे च । भेदनिदानं किंतयेनैतज्जृम्भते वचस्त्विति चेत् ॥ २३ ॥ अर्थ - वस्तु एक अखण्ड क्रम है । वह अनादि है, अनन्त है, और निर्विकल्प भी है । ऐसी वस्तु भेदका क्या कारण है ? जिससे कि तुम्हारा उपर्युक्त कथन सुसङ्गत हो । भावार्थ - यहां पर यह प्रश्न है कि जब वस्तु अखण्ड द्रव्य है, तत्र सामान्यका प्रतिपक्ष विशेष, एकका प्रतिपक्ष अनेक, उत्पाद व्यय धौव्यका प्रतिपक्ष प्रत्येक एक लक्षण, अनन्त पर्यायका प्रतिपक्ष एक पर्याय आदि जो बहुतसी बातें कही गई हैं, वे ऐसी हैं जो कि क्रयमें खण्डपको सिद्ध करती हैं। इस लिये वह कौनसा कारण है जिससे ऋपमें सामान्य, विशेष, एक, अनेक, उत्पाद, व्यय, धौम्य आदि भेद सिद्ध हों ? उत्तर- अंशविभागः स्यादित्यखण्डदेशे महत्यपि द्रव्ये । विष्कम्भस्य क्रमतो व्योम्नीवाङ्गलिवितस्तिहस्तादिः ||२४|| प्रथम द्वितीय इत्याद्य संख्यदेशास्ततोप्यनन्ताश्च । अंशा निरंशरूपास्तावन्तो द्रव्यपर्ययाख्यास्ते ॥२५॥ * सत्ताके विषय में स्वामी कुंदकुंद भी ऐसा ही कहते हैं सत्ता सव्वयस्था सविस्सरूवा अनंत पजाया । उप्पादवयधुवत्ता सपविक्खा हवदि एगा ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only पचास्तिकाय | www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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