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________________ areneur-mswwemamerammarweawanRRENameeramAAAAAAAAAAVAAD अध्याय । सुबोधिनी टीका। अब नयके दो भेदोंका उल्लेख किया जाता है--- एकोद्रव्यार्थिक इति पर्यायाधिक इति द्वितीयः स्यात् । सर्वेषां च नयानां मूलनि नथ धावत् ॥ ५१७ ॥ अर्थ-एक द्रव्यार्थिक नय है, दूसरा पर्यायार्थिक नय है। सम्पूर्ण नयोंके मूलभूत ये दो ही नय हैं। __द्रव्याधिक नय--- द्रव्यं सन्मुख्यतया केवलनः प्रयो यस्य । भवति द्रव्यार्थिक इति नयः साधात्वर्थ संज्ञकश्चकः ॥१८॥ अर्थ-केवल द्रव्य ही मुख्यतासे जिप्त नयका प्रयोजन विषय है वह नय द्रव्यार्थिक नय कहा जाता है और वहीं अपनी धातुके अर्थके अनुसार यथार्थ नाम धारक है तथा वह एक है । भाव----पर्यायको गौग रखकर सुस्मतासे जहां द्रव्य कहा जाता है अथवा उसका ज्ञान किया जाता है वह दुव्यार्थिक नब कहलाता है, और वह एक है, क्योंकि उसमें भेद विवक्षा नहीं है। पया याथिक नय-- अंशाः पर्याया इति तन्मध्ये यो विवक्षितोंऽशः सः अर्थों यस्येति मतः पर्यायाधिक व्यस्त्वनेकश्च ॥ ५१९॥ अर्थ-अंशोंका नाम ही पर्याय है उन अंशोंमें से जो विवक्षित अंश है वह अंश जिस नयका विषय है, वही पर्यायार्थिक नय कहलाता है। ऐसे पर्याय र्थिक नय अनेक हैं। भावार्थवस्तुकी प्रतिक्षण नई २ पयायें होती रहती हैं, वे सब वस्तु ही अंश हैं। जिस समय किसी अवस्थारूपमें वस्तु कही जाती है उस समय वह कथन अथवा वह ज्ञान पर्यायार्थिक नय कहा जाता है। पर्याय अनेक हैं इसलिये उनको विषय करनेवाला ज्ञान भी अनेक है तथा उसको प्रतिपादन करनेवाले वाक्य भी अनेक हैं। नोंका विशद स्वरूप कहनेकी प्रतिज्ञा---- अधुना रूपदर्शनं संदृष्टिपुरस्सरं योर्वक्ष्ये। श्रुतपूर्वमिव सर्व भवति च यदाऽनुभूतपूर्व तत् ॥ ५२० ॥ अर्थ--आचार्य कहते हैं कि वे अब उन दोनों नयोंका स्वरूप दृष्टान्तपूर्वक कहेंगे। दृष्टान्त पूर्वक कहनेसे सुननेवालोंको वह विषय पहले सुने हुएके समान हो जाता है अथवा पहले अनुभव किये हुएके समान होजाता है। . पर्यायार्षिक नय विचार---- पर्यायार्थिक नय इति यदि वा व्यवहार एव नामेति । एकार्थो यस्मादिद सर्वोप्युचारयात्रः स्यात ।। ५२१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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