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________________ आधारदिनकर (खण्ड-४) 41 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अपनी पत्नी के साथ इस व्रत का भंग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। शब्दभेद, अर्थात् ध्वनि की समानता के कारण अपनी पत्नी के भ्रम में, अन्धकार में अन्य किसी नारी के साथ इस व्रत का भंग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। निर्बल स्त्री के साथ बलपूर्वक इस व्रत का भंग करने पर भी दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। विवाहित स्त्री के साथ व्रत की निश्चित काल-मर्यादा का उल्लंघन करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। उत्तम कुल की स्त्री के साथ मर्यादा का उल्लंघन करने पर मूल-प्रायश्चित्त आता है, किन्तु प्रसिद्धपात्र, अर्थात् ख्यातिप्राप्त व्यक्ति को दस उपवास का प्रायश्चित्त दें, उसे मूल-प्रायश्चित्त न दें। परिग्रहव्रत का भंग होने पर जघन्यतः एकासन, मध्यमतः आयम्बिल एवं उत्कृष्टतः उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अहंकारपूर्वक इस व्रत का भंग करने पर दस उपवास का, अथवा एक लाख अस्सी हजार नमस्कार-मंत्र के जाप का प्रायश्चित्त आता है। कदाचित् पाँचों अणुव्रतों का स्वप्न में भंग हो, तो चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। दिग्व्रत एवं भोगोपभोग व्रत का खण्डन होने पर तथा रात्रि में भोजन बनाने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अहंकारवश मक्खन, मदिरा, मांस एवं मधु (शहद) का भक्षण करने पर प्रत्येक के लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। औषधि के रूप में मक्खन एवं शहद का सेवन करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। मदिरालय में मदिरा का सेवन करने पर, अनंतकाय का भक्षण करने पर तथा पाँच उदुम्बर फलों का भक्षण करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। प्रत्येक वनस्पतिकाय का भक्षण करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है - यह प्रायश्चित्त-विधान साधुओं द्वारा कहा गया है। सचित्त, द्रव्य, वस्त्र, अन्न, शय्या आदि चौदह प्रकार के नियमों का भंग करने पर प्रत्येक नियम के लिए पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। सचित्तवस्तु-त्याग का नियम होने पर भी प्रत्येक वनस्पतिकायरूप आम्रफल आदि का भक्षण करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। चुगली, परनिंदा, मिथ्यादोषारोपण एवं राग करने पर प्रत्येक के लिए आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। चार प्रकार के Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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