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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 372 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि “ॐ अहँ नमोऽर्हते समवसरणस्थाय सिंहासनस्थाय चैत्यद्रुमच्छायाप्रतिष्ठाय निःकल्मषाय निःकर्मकाय प्रियप्रबोधाय स्थिराय तदस्तु पट्टबन्धेनानेन भगवान् अर्हन् सुप्रतिष्ठितः सुपूजितः अहं ऊँ।"यह पट्ट बांधने का मंत्र है। तत्पश्चात् अन्य राजा, सामन्त, मण्डलाधिप, ग्रामाधिप, धर्माधिकारी, सेनापति, मंत्री, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि क्रमशः तिलक करते हैं। सभी प्रणाम करके स्वोचित उपहार, यथा- हाथी, घोड़ा, आभूषण, सिंहासन, शस्त्र, वस्त्र, कवच, पुस्तक, द्रव्य, फल आदि अर्पण करें। उन सबके द्वारा तिलक करने पर यतिगुरु अथवा गृहस्थ गुरु पौष्टिकदण्डक का पाठ बोले। तत्पश्चात् श्वेत मुक्ताजाल से अंकित छत्र उसके परिजन अपने हाथ में लेकर आएं। तत्पश्चात् यतिगुरु या गृहस्थ गुरु पुष्प एवं अक्षत डालकर यह मंत्र बोले - “ॐ अहँ नमो रत्नत्रयाय विमलाय निर्मलाय ऊोर्ध्वाधिकाय भुवनत्रयदुर्लभाय दुर्गतिच्छादनाय कामितप्रदाय विश्व प्रशस्याय भगवन् रत्नत्रय इहातपत्रे स्थिरो भव शान्तितुष्टिपुष्टिधृतिकीर्तिमतीः प्रवर्धय अर्ह ऊँ।"- यह छत्रपूजन का मंत्र है। तत्पश्चात् “सर्वोपि लोको दिननाथपादान्निधाय शीर्षेलभते प्रवृत्तिं। छत्रान्तरालेन महीश्वरोयं द्वितीयतां तस्य दधाति भूमौ ।।" - यह श्लोक बोलकर छत्र को उसके परिजनों के हाथ से राजा के सिर के ऊपर सुशोभित करवाए। तत्पश्चात् चामर लाकर पुष्प, अक्षत से यतिगुरु, अथवा गृहस्थ गुरु चामर की पूजा करे। तत्पश्चात् निम्न मंत्र बोले - . “ऊँ अहं नमोऽर्हते भगवते अष्टमहाप्रातिहार्यकलिताय ललिताय चतुःषष्टिसुरासुरेन्द्रपूजिताय सर्वसंपत्कराय सर्वोपद्रवनिवारणाय सर्व विश्वत्रयधारणाय जगच्छरण्याय स्थिरोस्तु भगवन्नत्र तव प्रभाव अहं ऊँ।" - यह चामर अभिमंत्रित करने का मंत्र है। तत्पश्चात् "भूयादस्य पदन्यासः सर्वेष्वपि हि जन्तुषु। अन्यस्यापि पदन्यासो नास्मिन्कस्यापि जायतां ।।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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