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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 322 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि नमस्कार महामंत्र की आराधना के लिए जो तप किया जाता है, वह नमस्कार-तप कहलाता है। इसके पहले पद में सात वर्ण हैं, इसलिए उसके सात एकासन करे। दूसरे पद में पाँच अक्षर होने से पाँच एकासन करे। तीसरे पद के सात, चौथे पद के सात, पाँचवें पद के नौ, छठवें पद के आठ, सातवें पद के आठ एवं नवें पद के नौ या गुरु- परम्परा विशेष से आठ एकासन करे - इस प्रकार इस तप में कुल अड़सठ एकासन होते हैं। इस तप के उद्यापन में चाँदी के पतरे पर स्वर्ण की कलम से पंचपरमेष्ठीमंत्र लिखकर ज्ञानपूजा करे। अड़सठ-अड़सठ फल, पुष्प, मुद्रा एवं पकवान रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से सर्व सुखों की प्राप्ति होती है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों - दोनों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - ज्झा ७ नमस्कार-तप, आगाढ़, तप दिन - ६८ १ पद के अक्षर ७ | न मो / अ | रि | हं | ता | णं २ पद के अक्षर ५ । न | मो | सि | द्धा | णं ३ पद के अक्षर ७ | न | मो । आ । यरिया ४ पद के अक्षर ७ न मो । उ । व। ५ पद के अक्षर ६ | न | लो | सा | ६ पद के अक्षर ८ | ए | सो | पं | च | न | म | क्का | रो ७ पद के अक्षर ८ | स | व्व । पा | णा | ८ पद के अक्षर ८ | मं | ग | ला | णं | च स ब्वे ६ पद के अक्षर ६/८ प ढ | मं । ह । व इ | मं । ग है avipar r ४४. चतुर्दशपूर्व-तप - अब चतुर्दशपूर्व-तप की विधि बताते हैं - "शुक्ल पक्षे तपः कार्य चतुर्दश चतुर्दशीः। चतुर्दशानां पूर्वाणां, तपस्तेन समाप्यते।।।।" चौदह पूर्व की आराधना के लिए जो तप किया जाता है, वह चतुर्दशपूर्व-तप कहलाता है। शुभ संयोग में सुदी (शुक्ल पक्ष) चतुदर्शी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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