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________________ वा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. मुक्तावली तप दिन ३००, पारण दिन ६०, सर्व दिन ३६० पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. आचारदिनकर (खण्ड-४) 303 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि इस तप में सर्वप्रथम एक उपवास करके पारणा करे। तत्पश्चात् निरन्तर दो उपवास करके पारणा करे, फिर उपवास करके पारणा करे। उसके बाद तीन उपवास करके पारणा करे, फिर एक उपवास करके पारणा करे। तत्पश्चात् क्रमशः चार उपवास करके पारणा करे, फिर पुनः एक उपवास करके पारणा करे - इसी प्रकार चढ़ते-चढ़ते सोलह उपवास करके पारणा करे और पुनः एक उपवास करके पारणा करे। इस प्रकार यह एक श्रेणी पूर्ण होती है। तत्पश्चात् पश्चानुपूर्वी से द्वितीय श्रेणी प्रारंभ कर, अर्थात् सर्वप्रथम । १६ । सालह उपवास करक पारणा जो द्वितीय दाडिम तीन-तीन उपवास से करते हैं, वे पुनः करे, फिर एक उपवास एक, दो, तीन उपवास द्वारा पूर्ववत् द्वितीय दाडिम करके पारणा करे, लाल ३६० + ७७' - ४३७ होते हैं। तत्पश्चात् पन्द्रह उपवास पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. . पा. पा. पा. पा. १५ पा. १६ । पा. काहाल करे - इस प्रकार करने ' टिप्पणी - ७७ उपवास इस प्रकार से है - सर्वप्रथम प्रथम श्रेणी की काहलिका के लिए एक उपवास, दो उपवास पारणा, तीन उपवास पारणा करे। तत्पश्चात् दाड़िम के लिए निरन्तर तीन-तीन उपवास - इस प्रकार नौ बार करे। इसी तरह पश्चानुपूर्वी में भी करे। इस प्रकार यहाँ पर काहलिका एवं दाडिम की अपेक्षा से ही ७७ दिनों की संख्या अतिरिक्त दी गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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