SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 183 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि १६. वरुणोपपात २०. धरणोपपात २१. वेलंधरोपपात २२. देवेन्द्रोपपात २३. वैश्रमणोपपात २४. उत्थानश्रुत २५. समुत्थानश्रुत २६. नागपरिज्ञावलिका २७. निरयावलिकाकल्पिका २८. कलवतंसक २६. पुष्पिता ३०. पुष्पचूलिका ३१. वृष्णिदशा ३२. आशीविषभावना ३३. दृष्टिविषभावना ३४. चारणभावना ३५. महाश्रमणभावना ३६. तैजसनिसर्ग इत्यादि। इन सभी कालिक श्रुतों के योगोद्वहन में कालग्रहण, संघट्ट (संस्पर्श) आदि क्रियाए होती हैं। "सव्वेसि पि ........... .......... दुक्कडं।" "इन सभी अंगबाह्य कालिक सूत्रों के अतिरिक्त शेष सम्पूर्ण मूल पाठ का अर्थ पहले लिखे गए षडावश्यक के आलापक के समान ही है। “नमो तेसिं खमासमणाणं जेहिं इमं वाइअं दुवालसंगं गणिपिडगं भगवन्तं तं जहा-आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विवाह पन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अन्तगडदसाओ अणुत्तरोववाइअ दसाओ पण्हावागरणं विवागसुयं दिट्ठिवाओ।" भावार्थ - क्षमादि गुणों से युक्त उन श्रमणों को नमस्कार हो, जिन्होंने गणिपिटकरूप अतिशय उत्तम गुण आदि से युक्त द्वादशांगी हमको प्रदान की। वे इस प्रकार हैं -१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. विवाहप्रज्ञप्ति - भगवती-सूत्रांग ६. ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासकदशांग ८. अन्तकृद्दशांग ६. अनुत्तरोपपातिकदशांग १०. प्रश्नव्याकरणांग ११. विपाकश्रुत एवं १२. दृष्टिवादांग - इन सभी अंग-आगमों में नाम के अनुरूप सिद्धान्त के सारभूत कथन किए गए हैं। इनके अध्ययन, उद्देशक एवं परिमाण आदि को ग्रन्थ-विस्तार के भय से यहाँ नहीं कहा गया है, इसकी जानकारी आगमों (महाशास्त्रों) से प्राप्त करें। "सव्वेसिं पि ...... मिदुक्कडं।" ' आचारदिनकर में नंदीसूत्र की अपेक्षा - १. आशीविषभावना २. दृष्टिविषभावना ३. चारणभावना ४. महाश्रमणभावना एवं ५. तेजसनिसर्ग - इन कालिकसूत्रों के नाम अतिरिक्त दिए गए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy