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________________ 48 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री १४. भावनाद्वार १५. संलेखनाद्वार भगवती-आराधना की विषयवस्तु : भगवतीआराधना ग्रन्थ के प्रारम्भ में सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार करके आराधना के स्वरूप का ग्रन्थकार द्वारा कथन करने का संकल्प है। इसके पश्चात् पीठिका के रूप मे संक्षेप से आराधना के दो एवं तीन प्रकार कहे गए हैं, श्रद्धा एवं चारित्र और दर्शन, ज्ञान, चारित्र का प्रतिपादन कर मरण के सत्तरह भेदों का उल्लेख है। उसके पश्चात् बालमरण का तथा पण्डित-मरण के तीन भेद पादपोपगमनमरण, भक्तपरिज्ञामरण और इंगिनीमरण आदि का प्रतिपादन करते हुए भक्तपरिज्ञामरण के दो भेद किए हैं :- १. सविचारमरण एवं २. अविचारमरण । __ सविचार का अर्थ है- बिना किसी प्रकार की विवशता के स्वेच्छापूर्वक तप आदि करते हुए देहत्याग का निर्णय लेना तथा अविचारपूर्वक भक्तप्रत्याख्यान का अर्थ है- तत्काल सागारिक-भक्तप्रत्याख्यान ग्रहण करना । भगवतीआराधना में सविचारभक्तप्रत्याख्यान का उल्लेख (कथन) चार गाथाओं से चालीस अधिकारसूत्रों की सहायता से किया जाता है। वे निम्न हैं - १. अर्हता, अर्थात् योग्यता २. लिंग ३. शिक्षा ४. विनय ५. समाधि ६. अनियत-विहार ७. परिणाम ८. परिग्रहत्याग ६. श्रेणी १०. भावना ११. संलेखना १२. दिशा १३. क्षमण १४. अनुशिष्टि १५. परगणचर्या १६. मार्गणा १७. सुस्थित १८. उपसम्पदा १६. परीक्षा २०. प्रतिलेखना २१. आपृच्छा २२. प्रतिक्षण २३. आलोचना २४. गुणदोष २५. शय्या २६. संस्तर २७. निर्यापक २८. प्रकाशन २६. हानि ३०. प्रत्याख्यान ३१. क्षमापना ३२. क्षमण ३३. अनुशिष्टि ३४. स्मरण ३५. कवच ३६. समता ३७. ध्यान ३८. लेश्या ३६. फल एवं ४०. परित्याग। ___ इसके पश्चात् अविचारभक्तप्रत्याख्यान मरण का स्वरूप बताते हुए उसके निम्न तीन भेदों का वर्णन हैं-निरुद्ध, निरुद्धस्तर और परम निरुद्ध । इस तरह संवेगरंगशाला एवं भगवतीआराधना- इन दोनों ग्रन्थों में प्रस्तुत समाधिमरण की विषयवस्तु का संक्षिप्त निर्देश करने के पश्चात् इन दोनों ग्रन्थों में स्थित असमानता का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया जाता है। संवेगरंगशाला भगवतीआराधना संवेगरंगशाला में चार | भगवतीआराधना में मूलद्वारों का निर्देश करने के पश्चात् सविचारभक्तप्रत्याख्यान का विवेचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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