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________________ 454 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री यह सुना तो क्रोधाग्नि से जलते हुए कहने लगा- “हा धिक् नि गिनी! तू मुझे देखकर क्या हंसती है?" इस प्रकार क्रोध के वशीभूत बना पुष्पशाल अपने सर्वकार्य को छोड़कर उस भद्रा का अपकार करने की इच्छा से उसके घर पहुंचा। वहाँ अपने सुमधुर स्वर से आदरपूर्वक परदेश गए पतिवाली स्त्री का वृत्तान्त इस तरह गाने लगा, जैसे- सार्थवाह बार-बार उसका वृत्तान्त पूछता है, हमेशा पत्र भेजता है, पत्नी का नाम सुनकर अत्यन्त प्रसन्न होता है, दर्शन के लिए उत्सुक हुआ वह वापस घर आता है और अब घर में प्रवेश कर रहा है, इत्यादि। उसे सुनकर भद्रा ने उसे सत्य मान लिया और होश भूलकर अपने पति के पास दौड़ने लगी। इस तरह मूर्छित-अवस्था में भागने से वह महल से नीचे गिर गई और मर गई। कुछ दिन बाद उसका पति घर आया, तब पत्नी का सारा वृत्तान्त सुनकर उसने पुष्पशाल को अपने घर बुलाया और उसे भरपेट उत्तम भोजन खिलाया। फिर कहा- "हे भद्र! गीत गाता हुआ महल के ऊपर पहुँच।" चढ़ना और गाना- इस तरह दुगुने परिश्रम से उसकी श्वांस फूलने लगी, जिससे उसके मस्तक की नस फट गई और वह वहीं मर गया। इस तरह श्रोतेन्द्रिय के विषय में आसक्त बने जीव की बुरी हालत होती है। __इस कथा के माध्यम से जिनचन्द्रसूरि बताते है कि इन्द्रियों तथा मन की विषयाभिलाषा में जब कोई प्राणी आसक्त हो जाता है, तब वे विषय उसके लिए बन्धन का कारण बन जाते हैं। इन मनोज्ञ या अमनोज्ञ विषयों में आसक्त होनेवाला विनाश को प्राप्त होता है, जैसे- सपेरे की बीन में मुग्ध बना सर्प पुनः जहर चूसने आता है, संगीत-लहरियों से मन्त्र-मुग्ध हुआ हरिण दौड़ नहीं पाता है और पकड़ा जाता है। प्रस्तुत प्रसंग में संवेगरंगशाला में जो पुष्पशाल की कथा दी गई है, वह हमें आवश्यकवृत्ति (पृ. ३६८) एवं आचारांगवृत्ति (१५४) में उपलब्ध होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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