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________________ 324/ साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री स्तम्भवाला महल बना दूंगा।" तब अभयकुमार सुतार को लेकर वापस चला गया। देव ने तुरन्त आरामदायक एक स्तम्भवाला महल बनाया। उसी महल में रानी के साथ विविध क्रीड़ा करते हुए राजा के कई दिन व्यतीत हुए। किसी दिन उस नगर में चाण्डाल की पत्नी ने गर्भ-धारण किया। गर्भ के प्रभाव से उसे एक दिन आम खाने का दोहद उत्पन्न हुआ, परन्तु उसका दोहद पूर्ण नहीं हुआ। उसके सर्व अंग क्षीण होते देखकर चाण्डाल ने पूछा- "हे प्रिया! तुम सर्व अंग से क्षीण क्यों हो रही हो?" तब उसने अपने परिपक्व आम्रफल का दोहद बताया। चाण्डाल ने कहा- “यद्यपि आम्रफल का काल नहीं है, फिर भी हे सुतनु! मैं तुझे कहीं से भी आम्रफल लाकर दूंगा।" राजा का बाग सर्वऋतुओं के फलों वाला है, ऐसा मैंने सुना है- ऐसा विचारकर वह चाण्डाल बाग में लगे वृक्षों को देखने चला गया। रात्रि में उसने अवनामिनी-विद्या से शाखा को अपनी ओर झुकाया तथा आम्रफल लेकर उत्तम प्रत्यवनामिनी-विद्या से शाखा को पुनः अपने स्थान पर पहुंचा दिया। इस तरह प्रसन्न होते हुए, उस चाण्डाल ने उन फलों को अपनी पत्नी को दिया। इससे अपना दोहद पूर्ण कर गर्भ की रक्षा करते हुए पत्नी सुखपूर्वक रहने लगी। इधर राजा ने आम्रवृक्ष को फल के बिना देखकर बागवान से पूछा"इस पेड़ का फल किसने लिया?" उसने कहा- “निश्चय ही यहाँ कोई मनुष्य नहीं आया। यह आश्चर्य है।" श्रेणिक राजा ने अभयकुमार को कहा- “ऐसा कार्य करने में समर्थ चोर को जल्दी पकड़ो, क्योंकि आज जैसे फलों की चोरी की है, वैसे ही वह किसी दिन मेरी रानी का भी हरण करेगा।" राजा की आज्ञा को शिरोधार्य कर अभयकुमार चोर की खोज करने लगा। कई दिन बीत गए, परन्तु चोर का कोई पता नहीं लगा। कुछ समय पश्चात् राज्य में एक नट आया। उसने कई तरह के नाटक प्रस्तुत किए। उसके नाटक की कीर्ति राज-दरबार तक पहुँची। राजा ने अभयकुमार से राजसभा में नाटक प्रस्तुत करने को कहा। अभयकुमार ने नाटककार को राजसभा में नाटक प्रस्तुत करने का आदेश दिया। नट तुरन्त राजसभा में हाजिर हुआ और नाटक प्रारम्भ करने लगा। तभी चिन्तातुर बने अभयकुमार ने लोगों से कहा- "नाटक प्रारम्भ हो, उसके पहले आप लोगों को मैं एक कथा सुनाता हूँ।" यह कहकर अभयकुमार ने एक कहानी सुनाकर लोगों से प्रश्न पूछा- “भाइयों पति, चोर, राक्षस और माली-इन चारों में से दुष्कर कार्य किसने किया?" ईर्ष्यालुओं ने कहा“पति ने अति दुष्कर कार्य किया है।" परदारिक बोले- “माली ने दुष्कर कार्य किया है।" चाण्डाल ने कहा- "कोई कुछ भी कहे, परन्तु चोर ने दुष्कर कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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