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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 305 अशुद्ध होता है, वैसे ही लेश्यासहित जीव शुद्ध नहीं होता है, इसलिए जो जीव शुद्धलेश्या से देह का त्याग करता है, तो वह विशुद्ध आराधना को प्राप्त करता है। जीव जिस लेश्या में मृत्यु को प्राप्त करता है, उसी लेश्या में पुनः उसका जन्म होता है, इसलिए प्रत्येक जीव को अपनी लेश्या को शुद्ध करने के लिए अवश्यमेव प्रयत्न करना चाहिए। इस प्रकार लेश्यारहित जीव कषायों को नष्ट करके अक्षय सुख-समृद्धिरूप मोक्ष (सिद्धि) को प्राप्त करते हैं। 740 ध्यान : संवेगरंगशाला में आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने समाधिमरण के साधक के लिए ध्यान-साधना को आवश्यक माना है। उन्होंने ध्यान को मन की एकाग्रता अथवा चित्तनिरोध कहा है। किसी एक विषय या वस्तु पर एकाग्रता ध्यान है। व्यक्ति के मस्तिष्क में अनेक प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं और वे विचार शुभ और अशुभ दो प्रकार के हो सकते हैं। ध्यान में शुभ एवं अशुभ- दोनों प्रकारों के विचारों की एकाग्रता पाई जाती है। इसी अपेक्षा से संवेगरंगशाला में ध्यान के चार भेद बताए गए हैं। वे निम्न हैं : १. आर्त्तध्यान २. रौद्रध्यान ३. धर्मध्यान और ४. शुक्लध्यान. १. आर्त्तध्यान : आर्त अर्थात् शोकावस्था, दुःखी होने का ध्यान। इसे अप्रशस्त एवं अशुभध्यान भी कहते हैं। इसके ध्यान से कर्मों की निर्जरा नहीं होती, अपितु कर्म-बन्धन अवश्य होते हैं। आर्त्तध्यान इन्द्रिय-विषयों के प्रति अनुराग के कारण होता है । ग्रन्थकार ने इसके चार भेद बताए हैं १. अनिष्ट-संयोग अप्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु का संयोग होने पर उसके वियोग की चिन्ता करना । २. इष्ट-वियोग प्रिय व्यक्ति या किसी पदार्थ का वियोग होने पर या उसकी कल्पना से आर्तनाद एवं करुण क्रन्दन करना । शरीर के रोगों के निवारण हेतु ३. निरन्तर चिन्तन करना । 740 - व्याधि या रोग की चिन्ता संवेगरंगशाला, गाथा ६६६५-६६६४. Jain Education International - ४. परलोक की लक्ष्मी की अभिलाषा ( निदान) - भोगाकांक्षा अथवा अन्य किसी प्रयोजन से भविष्य के लिए संकल्प, आदि करना । - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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