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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 157 वह पुरुष उस कुमारिका से आयुष्य सम्बन्धी काल को निःसंशयपूर्वक जान लेता है। इससे यह फलित होता है कि देवता के द्वारा मनुष्य अपने या दूसरों के मृत्युकाल को जान सकता है। यह विद्या सदाचारी एवं सम्यक्त्वी जीवों के ही वांछित को पूर्ण करती है। 28 1 योगशास्त्र के पाँचवें प्रकाश में भी देवताद्वार का इसी प्रकार से निरूपण उपलब्ध होता है और साथ ही उसमें यह भी कहा गया है कि देवता उत्तम गुणों से युक्त साधक से आकर्षित होकर स्वयं निर्णयवान् होता हुआ संशयरहित त्रिकाल सम्बन्धी आयुष्यज्ञान को कह देता है । 282 शकुन - द्वार :- संवेगरंगशाला में शकुन नामक दूसरे द्वार का विवेचन करते हुए जिनचन्द्रसूरि लिखते हैं कि शकुन विद्या के द्वारा भी रोगी, अथवा निरोग व्यक्ति के आयुष्यकाल को जाना जा सकता है। इसमें पहले निरोग पुरुष के आयुष्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि काल का ज्ञान प्राप्त करने के लिए शकुन द्वार में यह प्रतिपादित किया गया है कि सर्वप्रथम शुभभावों से अपने इष्ट देवता को नमस्कार करें, फिर एकाग्रचित्त होकर प्रशस्त दिन घर में या बाहर शकुन को देखकर उनके भाव ( फलों) का सम्यक् विचार करें। " जैसे- सर्प, चूहे, कीड़े, गिलहरी, बिच्छू, आदि की अति वृद्धि हो गई हो, अथवा घर में दीमक लगी हो, भूमि में चीराड़ या दरार आ गई हो, खटमल, जूं, आदि का बहुत ज्यादा उपद्रव हो गया हो, घर में मकड़ी का जाल, अनाज में कीड़े, आदि बिना कारण बढ़ गए हों, तो घर में उद्वेग, कलह, युद्ध, धन का नाश, व्याधि अथवा मृत्यु, आदि संकट उत्पन्न होते हैं। 283 साथ ही इसमें यह भी बताया गया है- “जब व्यक्ति निद्रा में हो और सहसा एक कौआ आकर उसके बालों को खींचता हो तथा उसके वाहन, शस्त्र, जूते, छत्र, अथवा शरीर को निःशंक रूप से अपनी चोंच या पंजे से काटता हो या मारता हो, तो वह शीघ्र यमलोक में गमन करनेवाला है - ऐसा समझना चाहिए। यदि अश्रुपूर्ण नेत्र से कोई गाय, आदि पशु पैर से पृथ्वी को खोदे, तो वह घटना अपने मालिक के रोग उत्पत्ति का कारण के साथ-साथ मृत्यु का हेतु भी बनती है। २४ 281 विगरंगशाला, गाथा ३०७०-३०७१. 282 योगशास्त्र, गाथा १७३ - १७६, प्रकाश - ५. 283 284 संवेगरंगशाला, गाथा ३०७४-३०७६. विगरंगशाला, गाथा ३०७७.३०८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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