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________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [ 219 भावार्थ:-जहांपर मूर्त स्वभाव तिरोहित नहीं है, वहाँपर अमूर्त स्वभाव है ही नहीं; और जहाँ आत्मद्रव्यमें कर्म है, वहाँ अमूर्तता तिरोहित नहीं है; किन्तु, वहाँपर मूर्त्तता अन्त्यरहित अनुगमसे है // 11 // ___ व्याख्या / यत्र पुद्गलद्रव्यस्य मूर्तिमूर्तता अभिभूता नास्ति किन्तुद्भूताऽस्ति तत्रामूर्त्ततास्वभावो न भवति / अमूर्त्तता ह्यपुद्गलद्रव्यस्यान्त्यविशेषः / अथ च यत्रात्मद्रव्ये कर्म भवति न तत्रामूर्ततामिभूतास्ति / तत्र चामूर्त्तता अनन्त्यानुगमजनितसाधारणधर्मरूपा भवति / तथा चान्योन्यानुगमाविशेषेऽपि कचिदेव किञ्चित्केनचित्कथंचिदभिभूयत इति यथागमव्यवहारमाश्रयणीयम् // 11 // ___ व्याख्यार्थः-जहाँ पुद्गलद्रव्यका मूर्त स्वभाव अभिभूत (छिपा हुआ) नहीं है किन्तु उद्भूत (प्रकट ) है वहां अमूर्त्तता स्वभाव नहीं होता है। क्योंकि अमूर्तता पुद्गलसे भिन्न द्रव्यका अन्त्य विशेष है / और जहाँ आत्मद्रव्यमें कर्म होता है वहां भी अमूर्त्तता अभिभूत नहीं है / क्योंकि वहांपर अमूर्तता अन्त्यसे भिन्न अनुगमसे उत्पन्न साधारण धर्मरूप है / इस प्रकार पुद्गल तथा जीवद्रव्य के अनुगममें विशेषता न होनेपर भो कहीं कोई भाव किसीसे किसी प्रकारसे अभिभूत होता है इस प्रकार शास्त्रके व्यवहारके अनुसार अंगीकार करना चाहिये // 11 // अन्त्यो भावः पुद्गलस्यापीथमत्र विलुप्यते / असद्भूतनये तेन परोक्षोऽणुरमूर्तकः // 12 // भावार्थः-पुद्गलका अन्त्य भाव भी इसी प्रकार यहां लुप हो जाता है; इसोसे असद्भूतनयके मतमें परोक्ष परमाणु अमूर्त माना गया है // 12 // व्याख्या / उपचारेणाप्यमूर्तस्वभावः पुद्गलस्य न स्यादिति कथयता मतेऽन्त्यो भाव एकविंशतितमः स्वमावः पुद्गलस्य विलुप्तो भवति तदा पुनः “एकविंशतिभावाः स्युर्जीवपुद्गलयोर्मताः" इत्येतद्वचनव्याघातादपसिद्धान्तोऽपि जायते / अथ तच्छङ्कापनोदायाह असद्भूतव्यवहारनये तेन कारणेन यः परोक्षः पुद्गलपरमाणुरस्ति तस्यामूर्तता कथिता / व्यावहारिकप्रत्यक्षागोचरत्वममूर्तत्वं प्रमाणोपचरितं मक्त स्वीक्रियत इत्यर्थः // 12 // व्याख्यार्थः-उपचारसे भी पुद्गलके अमूर्तस्वभाव नहीं होता ऐसा कहनेवालोंके मतमें पुद्गलका अन्तका भाव अर्थात् इक्कीसवाँ स्वभाव नष्ट हो जायगा और पुद्गलका जब अमूर्तस्वभाव नहीं रहेगा तब पूर्व प्रसंगमें जो ऐसा कहा है कि “पुद्गल तथा जीव इन दोनोंमें प्रत्येकके एकविंशति 21 भाव हैं" इस वचनका व्याघात होनेसे सिद्धान्तकी भी हानि होती है / क्योंकि जब इक्कीसमेंसे एक अमूर्त स्वभाव निकल जायगा तब तो पुद्गलके बीस स्वभाव ही रहेंगे। इस प्रकारकी शंकाको दूर करनेके लिये कहते हैं कि इसी कारणसे असद्भूत व्यवहार नयमें जो परोक्ष पुद्गल परमाणु है उसके अमूर्तता कही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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