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________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [211 विषयमें होते हैं। उनमें पुद्गलसे संबद्ध प्राणीके मूतत्व है और अचेतनत्व भी है और इसीलिये प्रथम उपचरित भाव जीवके है। और यह कर्मजनित होनेसे "गौर्वाहीकः" "यह बोझा ढोनेवाला गौ (पशु) है" इस न्यायके अनुसार उपचरित है / इसलिये यहां, जो कर्मजनित उपचरित स्वभावता है सो जीवके कही गई है / और दूसरा जो सहजोपचरित स्वभाव है वह निर्मल (कमरहित ) सिद्ध जीवके है / सिद्धोंमें परका जो जानना है वह किसी कर्मकी उपाधिसे है ऐसा जो कहो तो वह ठीक नहीं है / क्योंकि आचाराङ्ग सूत्रमें कहा है कि, “कर्मरहित जीवके व्यवहार नहीं रहता है; क्योंकि उपाधि जो है सो कमसे होती है। इस प्रकार ये दश 10 स्वभाव पूर्वोक्त चेतनत्व आदि नियत द्रव्यवृत्ति हैं // 11 // अमी दश विशेषेण स्वभावाश्चैकविंशतिः / सर्वे पुद्गलजीवानां पश्चदशाप्यनेहसः // 12 // भावार्थ:-ये दश स्वभाव और पूर्वकथित सत्तादि एकादश ये सब मिलके 21 भाव पुद्गल और जीवके हैं और कालके पन्द्रह 15 स्वभाव हैं // 12 // व्याख्या / अमी दश स्वभावा: पूर्वोक्ता एकादश स्वमावा उमये मिलिता एकविंशतिसंख्या जायन्ते / तत्र पुद्गलानां जीवानां च प्रत्येकमेकविंशतिः स्वमावा भवन्ति / तथा अनेहसः कालद्रव्यस्य पञ्चदश मावा भवन्ति / मूलत एकविंशतिभावाः सन्ति / तेभ्यः षट निष्कास्यन्ते तदा पंचदश अवशिष्यन्ते / तानेवाग्रेतनपान व्याकरोति // 12 // व्याख्यार्थ:-चेतनत्व आदि ये दश स्वभाव तथा सत्ता आदि पूर्वकथित एकादश स्वभाव, दोनों मिलके इक्कीस 21 होते हैं / इनमें पुद्गलके इक्कीस भाव हैं और जीवके भी एकविंशति 21 भाव ही हैं। और कालके पन्द्रह स्वभाव हैं। आरंभसे जो इक्कीस भाव हैं उनमेंसे छः भाव जब निकाले जाते हैं तो पन्द्रह बाकी बचते हैं। अब आगेके श्लोकमें उन्हींका निरूपण करते हैं / / 12 // प्रदेशानेकता चित्ता मूर्तता च विभावता / शुद्धताऽशुद्धता चेति षड् होनाः कालगोचराः // 13 // भावार्थ:-बहुप्रदेशत्व, चेतनत्व, मूत्तत्व, विभावत्व, शुद्धत्व और अशुद्धत्व इन छह स्वभावोंसे रहित शेष पन्द्रह स्वभाव कालके हैं // 13 // ___ व्याख्या / बहुप्रदेशस्वभाव: 1 चित्तेति चेतनस्वभावः 2 मूर्ततेति मूर्तस्वभावः 3 विभावता विमावस्वभावः 4 शुद्धता शुद्धस्वभावः 5 अशुद्धता अशुद्धस्वभावः 6 एते षडेकविंशतिम्यो निष्कास्यन्ते तदा पञ्चदश सर्वे कालस्वभावाः // 13 // __ व्याख्यार्थः-बहुप्रदेशस्वभाव, चेतनस्वभाव, मूर्तस्वभाव, विभावस्वभाव, शुद्धस्वभाव और अशुद्ध स्वभाव ये छह भाव जब इक्कोसमेंसे निकालते हैं तो पन्द्रह रहते हैं, ये सब पन्द्रह स्वभाव कालके हैं // 13 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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