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________________ अधःप्रवृत्तकरणके परिणामोंका विचार १७०, १७४, १७८, १८२, १८६ आदि होता है। १६वें समयके परिणामोंका प्रमाण २२२ होता है। __ अव ऊपरके समयोंमें स्थित जीवोंके परिणामोंकी पूर्वके समयों में स्थित जीवोंके परिणामोंके साथ सदृशता और विसदृशता किस प्रकार है यह बतलानेके लिए अनुकृष्टि रचना करते हैं । अधःप्रवृत्तकरणके प्रत्येक समयके सब परिणामोंको उसीके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कालके संख्यातवें भागप्रमाण कालके समयप्रमाण भागोंमें विभक्त करे। इस हिसाबसे संख्यातका प्रमाण ४ स्वीकार करके उसका भाग १६ में देनेपर ४ लब्ध आये। निर्वर्गणाकाण्डकका प्रमाण भो इतना ही है । अतः प्रत्येक समयके परिणामोंको चार-चार खण्डोंमें विभाजित करना चाहिए। उसमें भी प्रथम खण्डसे द्वितीय खण्ड, द्वितीय खण्डसे तृतीय खण्ड और तृतीय खण्डसे चतुर्थ खण्ड विशेष अधिक है। यहाँ विशेष या चयका प्रमाण उक्त अन्तमहर्तका भाग निर्वगणाकाण्डकके प्रमाण में देनेपर जो लब्ध आवे उतना है । पहले अंकसदष्टि में निर्वगणाकाण्डकका प्रमाण ४ बतला आये हैं, अन्तर्महर्तका प्रमाण भी इतना ही है । अतः अन्तर्मुहतका प्रमाण ४ का भाग निवंगणाकाण्डकके प्रमाण ४ में देनेपर लब्ध १ आया। यही प्रकृतमें विशेषका प्रमाण है। इस हिसाबसे यहाँ सब समयोंके प्रथम खण्डमें तो वृद्धिका प्रश्न ही नहीं उठता । दूसरे, तीसरे और चौथे खण्डमें पहलेसे दूसरे में, दूसरेसे तीसरेमें और तीसरेसे चौथेमें क्रमसे उत्तरोत्तर १-१ संख्याकी वृद्धि हुई है । अतः वृद्धिरूप चयधन १+२+ ३ = ६ होता है। इसे पृथक्-पृथक् प्रथमादि समयोंके परिणाम पुजोमेसे घटा देने पर क्रमसे १५६, १६०, १६४, १६८ आदि प्राप्त होते हैं। इनमें खंडप्रमाण संख्या ४ का भाग देने पर सर्वत्र प्रथमादि समयोंमें प्रथम समयके खण्ड क्रमसे ३९, ४०, ४१, ४२ आदि संख्याप्रमाण प्राप्त होते नमें क्रमसे चयधनके मिलाने पर प्रत्येक समयके चारों खण्डोंके परिणाम जोंका प्रमाण आ जाता है । रचना इस प्रकार है सं० प्रथम खंड द्वि० खंड | तृ० खंड | च० खंड समय क्रम | परिणामोंका प्रमाण १६२ १६६ ४१ ४२ ४३ १७४ १७८ १८२ १८६ |orrm39 v० ०rmdru Movwovow १९० १९४ 85656XXXxxx8 సమీపీడనడక మనసు १९८ २०२ SHER:0852 २०६ २१० २१४ २१८ २२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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