SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संपदनारदकहा वि धम्मरयणवियारणेण पसायं करेह ।" सरिणा वि सवित्थरं कहेऊण गाहिओ सम्मत्तो । भणिओ -" भट्ट धम्मप्पभावो एस, ता संपयं पि विसेसेण तम्मि चेव जत्तो कायव्यो।' सो वि तहेव करेइ। वंदह जिणिदचंदे अट्रपयारं करेइ वरपूयं । गरुपज्जवासणपरो पडिलाभइ समणवर संघं ।।६३७।। दीणाईणं दाणं देइ जहिच्छाइ कूणइ जीवदयं । जिणभणियविहाणेणं कारवइ जिणिंद-भवणाई ।।६३८।। गामागरनगराइसु जिणिंद-भवणेहि मंडिया वसुहा । उत्तुंगधयवडेहि तेण कया पुहइनाहेण ॥६३९।। समणाण सुविहियाणं तेणं सुस्सावएण नरवइणा । पच्चंतियनरवइणो' सद्दावेऊण तो सिग्धं ॥६४०।। कहिओ य तेसि धम्मो वित्थरओ गाहिया सम्मत्तं । अप्पाहिया य बहसो समणाणं सावया होह ।।६४१।। अह तम्मि चेव समए सुर-कय-गोसीस-चंदणमयाए। वीरवरस्स भगवओ पडिमाए रहूसवो जाओ॥६४२।। तिहि-वारम्मि ५सत्थे सुमहत्ते कज्ज-साहए वंदे। मिलिओ चउविह-संघो अज्जसुहत्थी ठिओ मज्झे ।।६४३।। पवण-पहोलिर-सुक्किल-धयग्ग-हत्थेहि धम्मियजणं ते । हक्कारितो जग-गुरु-जिणिंद-पय-पणमणट्ठाए ॥६४४।। समकालाहयबहुविहतूरनिनाएण भरियबंभंडो । जय जय जय त्ति जंपिर मागह-जणजणियहलबोलो ।।६४५।। बहुसमण-समणि-सावय-साविय-संघा य विहियपरिवेढो। नच्चंत-वर-विलासिणि गायण-गिज्जंत-वर-गीओ ।।६४६।। भत्तिब्भरनिब्भराहिं अविहववेसाहिं रम्मरमणीहि । जिणगुणगब्भो दिसि-दिसि पारद्धो मंगलासहो ।।६४७।। नियठाणाओ चलिओ महाविभूईए रहवरो जाव । ताव-जणायसमकालताल-तुमुलसद्दो समुच्छलिओ।।६४८।। वत्थाहरण-विलेवण-वरफलघणसारसारकुसुमेहि । अच्चिज्जइ वंदिज्जइ पए पए धम्मियजणेहि ।।६४९।। सयलनराहिवसहिओ रहपुरओ भमइ संपईराया । परिहरियछत्त-चामर-मणिमउडो पायचारेण ।।६५०।। चउबिह-संघसमेया अज्जसुहत्थी वि मग्गओ इंति । ठाणे ठाणे बहुविहजिणस्स पूयं पडिच्छंतो ॥६५१।। रायमहापह-पह-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहाईसु । भमइ भवण्णवपोओ व्व रहवरो वीरनाहस्स ॥६५२।। आणंदिय-भग्वजणो भमिऊण सयलनयरमज्झम्मि । पच्छा पत्तो संपइनिवस्स पासायपासम्मि ॥६५३।। घेत्तूण रयण-थाले अग्धं अह देइ नरवरो तुट्टो । वत्थाईहि य परमं पूयं विहिणा विहेऊण ॥६५४।। सिरसावत्तं काऊण अंजलि भत्ति-पुलइय-सरीरो । आणंद-बाह-जलभरियलोयणो भणइ नरनाहो ॥६५५।।। हरिसंगयाण हरिसंगयाण हरिणंक-निम्मलजसाण । तिक्कालं पिह मणिवइ नमो नमो तुम्ह चलणाण ।।६५६।। नरवइ नियकरकयआरत्तिउ, कमेण पडिच्छमाणु जणभत्तिउ। हरिसवसेण रोमंचिय गत्तउ, अणुगच्छइ सामंतिहिं जुत्तउ ।।६५७।। पुरजणकयपूओ धम्मसव्वस्स भूओ, विहिय विविहसोहो नासियाणेयमोहो। विहियपवरजुत्तो सुदरासेसगत्तो। पुणरवि रहसाला सम्मुहो संनियत्तो ॥६५८।। विमलमणिमहेणं रंजियासा समूहो, वररइयवियाणो सत्तमुत्तावलीओ । सुरहिकुसुममाला मोयलुद्धालिमालो, कलरवकयगीओ संदणोठ्ठाइ नीओ।।६५९।। तओ कयपूयस्स काऊण चंदणाइयं पडिनियत्तो संघो । अज्जमूहत्थि सूरिणो वि समं संपइमहानरिंदेण नियवसहि गया। कया धम्मदेसणा-जहा-'महाराय !' सो च्चिय धणवंसो सो चेव पंडिओ तस्स माणुसो जम्मो। सम्मत्तरयणलाभो जस्स अणग्यो समुब्भूओ ।।६६०।। ता ते अरहं देवो रहिओ रागाइएहिं दोसेहिं । गुरुणो सुसाहुणो पुण जीवा इसु तत्तपडिवत्ती ॥६६१।। तत्थ वि गुरुयणभत्ती, विसेसओ धम्मसाहिगा भणिया। जं गुरुजणा उ नज्जइ धम्मा धम्माइयं सव्वं ।।६६२।। सयलकसलेक्कमूलं गुरुबहुमाणो न जाण हिययम्मि । सम्मत्ततरु कह होइ दढयरो ताण पुरिसाण ।।६६३।। जीवदयापडिवत्ती जिणिंद-भत्ती गुरुम्मि आढती । दाणम्मि य आसत्ती पुण्णेहि विणा न संपत्ती ।।६६४।। १तिय रायाणो पा० । २ लभोपा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001593
Book TitleJugaijinandachariyam
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy